अंध विरोध और अंध समर्थन …..
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सालाना बज़ट पेश कर दिया है | इसे हम सब ने विस्तार से पढ़ा भी और दूर दर्शन पर देखा भी | हर बज़ट की तरह इसमें भी तमाम क्षेत्रों के लिए आवंटन किया गया है | किसी में राशि बढ़ी है तो कोई यथावत है | आम आदमी से लेकर नौकरीपेशा लोग और छोटे से लेकर बड़े उद्यमी सभी के लिए कुछ न कुछ है | फिलहाल हम उन बारीकियों की चर्चा नहीं कर रहे हैं जिन पर काफी विस्तार से सदन में चर्चा हो चुकी है या फिर हम समाचार पत्रों , रेडियो या टेलीविजन के माध्यम से उससे वाकिफ हो चुके हैं |
यहाँ हम बात आम और खास लोगों की उस प्रतिक्रिया की कर रहे हैं जो कभी संतुलित नज़र नहीं आता | राहुल गाँधी , ममता बनर्जी , लालू प्रसाद यादव , नीतीश कुमार सहित देश के तमाम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेताओं की ( जो विपक्ष में हैं ) प्रतिक्रिया एक जैसी है जिसमे अंध विरोध के अलावा कुछ नहीं | इन लोगों को बज़ट में ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आता जो देश के किसी भी वर्ग को लाभान्वित करे | उसके साथ यह भी कि , मोदीजी को विपक्ष से चर्चा करनी चाहिए थी | मुझे याद नहीं की पंडित जवाहर लाल नेहरु से लेकर मनमोहन सिंह तक ऐसा कौन सा प्रधानमंत्री हुआ है जिसने अपना हर कदम विपक्ष से पूछ कर उठाया हो | शायद विपक्षी पार्टियाँ भी इस सच से इनकार नहीं कर पाएंगी कि देश के किसी भी पी एम् ने अपने वित्तमंत्री को यह हिदायत नहीं दी होगी की बज़ट पेश करने से पहले विपक्ष से विचार – विमर्श कर ले | अगर आज के नेताओं के पास ऐसा कोई उदहारण हो तो देश वासियों को जरूर बताएं ताकि उन्हें लोकतंत्र से जुडी कुछ ऐसी परम्पराओं का भी ज्ञान हो सके जो अब तक सिर्फ विपक्षी नेताओं तक सीमित है | कुछ ने कहा की सिर्फ घोषणाओं से कुछ नहीं होगा इन पर अमल भी हो तब माने | ये बात सौ फीसद सही है , लेकिन उसके मूल्यांकन के लिए हमें कम से कम एक वर्ष का इंतज़ार तो करना ही चाहिए | किसी ने कहा की , मोदी सुनिश्चित करें की हर घोषणा और योजना का क्रियान्वन पूरी इमानदारी से होगा | शायद इन लोगों को याद नहीं की बज़ट के साथ ऐसी शपथ की परंपरा कम से कम भारतीय लोकतंत्र में तो नहीं है | स्वर्गीय राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए यह बात खुले मंच से स्वीकारी थी कि उनकी ज्यादातर योजनाओं का सिर्फ २५ फ़ीसदी लाभ ही सही व्यक्ति तक पहुँचता है , बाकी राशि बिचौलिए आपस में बाँट लेते हैं | वैसे भी हर सम्बंधित अधिकारी या कर्मचारी के साथ पी एम् या सी एम् का खड़ा रहना नामुमकिन है ये बात तो विपक्षी या मोदी के घोर विरोधी भी मानेंगे |
अब चर्चा उन लोगों की जो मौजूदा केंद्र सरकार या फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थक या प्रशंसक हैं | इन लोगो की नज़र में इससे बढ़िया बज़ट हो ही नहीं सकता है | उन्हें इसमें किसी कोने से कोई कमी नहीं आती | उनकी नज़र में युवा , किसान , नौकरी – पेशा वर्ग , बड़े और छोटे उद्यमी सभी के सुनहरे दिन आ जायेंगे | इन सबको भी फिलहाल एक वर्ष तो रुकना चाहिए , उसके बाद ही यह कहा जा सकता है लि किसे क्या मिला और क्या मिलना बाकी रह गया | देश की प्रबुद्ध जनता और नेताओं से इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण में योगदान देने के लिए अंध विरोध और अंध समर्थन को त्याग न सकें तो कम से कम थोड़ा कम तो अवश्य कर दें|