इसे अभिव्यक्ति नहीं कहते …..
दिल्ली के रामजस कॉलेज की छात्रा गुरमेहर की बात अपनी जगह सही है | एक किशोरी की समझ पर सवाल खड़े करना शायद परिपक्वता नहीं होगी | हालांकि उसे यह समझाना होगा कि कोई भी देश युद्ध नहीं चाहता खासकर भारत | लेकिन जब -जब उस पर युद्ध थोपा गया है ,हमारे जांबाज़ सैनिकों ने अपनी शहादत देकर इसकी रक्षा की है , तिरंगे का मान बढ़ाया है |अगर कोई बीस बरस का लड़का या लड़की ये कहे कि १९६५ , १९७१ या फिर कारगिल युद्ध में हमारे सैनिकों को पाकिस्तान की सेना ने नहीं बल्कि युद्ध ने मारा तो इसे उसकी नासमझी से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता | ऐसे बयानों या त्वीट्स पर सबसे बेहतर है खामोश रह जाना | लेकिन जब यह साबित करने की कोशिश होने लगे कि नरेन्द्र मोदी के शाशन काल में पाकिस्तान की सेना हमारे सैनिकों को नहीं मार रही है बल्कि मोदी की गलतियों के कारण होने वाले युद्ध में ” बेचारे और पाक -साफ़ पाकिस्तानी सैनिक ” गोली चलने को विवश हो गए हैं तो इसे सीधा -सीधा देश द्रोह ही कहा जाएगा |गुरमेहर नासमझ है या हो सकती है लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले राहुल गाँधी , सीताराम येचुरी या फिर डी राजा जैसे नेताओं को कत्तई भोला नहीं कहा जा सकता | बड़ी सोची – समझी रणनीति के तहत इस तरह के नेता अपनी रोटियाँ सेंकने पंहुच जाते हैं हर उस जगह जहां से वोट बैंक की बू उन्हें मिल जाती है | जिस खुली आज़ादी के साथ कतिपय छात्र नेता और विपक्षी पार्टियों के नेता देश के मौजूदा प्रधानमंत्री को सुबह से रात तक पानी पी -पी कर कोस रहे हैं और हर उस गाली का प्रयोग कर रहे हैं जो उन्हें आती है , वो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि हमारे देश में हर किसी को बोलने और अपनी ” घटिया बात ” भी कहने की खुली आज़ादी है | शायद ही किसी सरकार या प्रधानमन्त्री के काल में भारतवासियों को अभिव्यक्ति की ऐसी आज़ादी रही हो | नीतियों की आलोचना हर सरकार में हुई है लेकिन बड़े शालीन और लोकतान्त्रिक तरीके से | सत्तर के दशक में वयोवृद्ध नेता जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा सरकार के खिलाफ बड़े ही लोकतान्त्रिक ढंग से आवाज़ उठाई थी तो उन पर इंदिरा गाँधी के हुक्म से लाठियां बरसा दी गयी थी | मौजूदा बिहार सरकार में बैठे ज्यादातर मंत्री और नेतागण इस बात को अभी भूले नहीं होंगे | राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अगर याददाश्त पर जोर डालेंगे तो उन्हें भी हर लम्हा और हर बात याद आ जायेगी | वो थी जनता की मांग और अभिव्यक्ति की आज़ादी को पूरी शक्ति से कुचल देने वाली सरकार | आज की सरकार में तो हर ऐरा -गयेरा भी जब देखो प्रधानमंत्री को गरिया रहा है | पिछले दिनों बिहार सरकार के एक मंत्री ने जिस तरह के मोदी विरोध का उदाहरण प्रस्तुत किया है और फिर भी उसका बाल बांका तक नहीं हुआ , इस बात का जीता – जागता प्रमाण है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार न सिर्फ सहनशील है बल्कि शालीन भी | अभिव्यक्ति की आज़ादी के तथाकथित पैरोकारों को तसलीमा नसरीन और तारेक फ़तेह के साथ बेहूदगी ,बद्द्तमीजी करने वाले नज़र क्यूँ नहीं आते | ऐसे कलमकारों और विचारको के खिलाफ मौत का फतवा ज़ारी करने वालों की आलोचना करते वक़्त ” सो काल्ड ” बहादुरों की जमात कहाँ मुंह छुपा लेती है | अगर अभिव्यक्ति की आज़ादी मोदी को गाली देना है तो वो आप जैसों को मिली हुई है और आप उसका खुल कर दुरूपयोग भी कर रहे हैं , लेकिन पाकिस्तान और चीन की भक्ति की इजाजत आपको नहीं मिल सकती | अफज़ल गुरु जैसे लोगों का महिमा मंडन अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं देशद्रोह है |