गांधी के बहाने मोदी पर प्रहार …..

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यकीन नहीं आता कि राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी की पुण्य तिथि पर भी लोगों को बापू  से ज्यादा हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही याद क्यूँ आती रही | खासकर हमारे कांग्रेसी नेताओं को | सभी ने एक स्वर में मोदी को जमकर कोसा | अरे भाइयों साल के ३६४ दिन ये करते , अच्छा लगता और आप सब को कुछ काम भी मिल जाता | बिहार के कबीना मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी को पुरे विश्व के देश शांति की राह पर चलते दिखे | यानी , बापू के बताये रास्ते पर , सिर्फ मौजूदा केंद्र सरकार हिंसा और नफरत के रास्ते पर चल रही है | उनके हिसाब से मोदी सरकार गोडसे के विचारों को प्रचारित – प्रसारित कर रही है |

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मजे की बात है कि कांग्रेस गांधीजी को  पेटेंट करा चुकी लगती है और उन्हें राष्ट्रपिता से कहीं ज्यादा कांग्रेस पिता साबित करने की असफल कोशिश में लगी है | वैसे अगर कोई भी पार्टी या कोई भी धर्म बापू को सिर्फ अपने तक सीमित करने की कोशिश कर रही है तो निश्चित रूप से बापू का इससे बड़ा अपमान नहीं हो सकता | वोट के लिए दीन –ईमान बेचने वाली लगभग हर राजनीतिक पार्टी को बापू की याद चुनाव के वक़्त जरूर आती है | साथ नाथू राम गोडसे के नाम की माला जपना भी वो नहीं भूलते | ये वही पार्टियाँ हैं जिन्होंने वोट की खातिर हमारे दो – दो पूर्व प्रधानमंत्रियों के हत्यारों को मदद करने वालों को माफ़ करने की नौटंकी की है | स्वर्गीय राजीव गाँधी की हत्या के बाद एम् करूणानिधि पर इसी कांग्रेस ने हत्या में उनकी साठ – गाँठ का आरोप मढ़ा था , पर हाय रे राजनीति , बाद में उन्ही करूणानिधि से हाथ मिला लिया | इंदिरा जी की हत्या उनके सिख अंगरक्षकों ने की तो इसी कांग्रेस ने पुरे देश में कत्ले आम और तबाही मचा दी थी | बाद में अपनी तथाकथित महानता का परिचय देते हुए मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया | उस वक़्त इन्ही महान कांग्रेसियों और तथाकथित धर्म निरपेक्ष पार्टियों के नेताओं का बयान आया था कि एक व्यक्ति के अपराध या पागलपन की सजा  पूरे समूह या उस पार्टी को नहीं दी जा सकती | लगा था की कांग्रेस के साथ – साथ उसकी पिछलग्गू ( उस वक़्त भाजपा को छोड़कर अधिकांश पार्टियाँ कांग्रेस की पिछलग्गू की ही हैसियत रखती थी ) पार्टियाँ कितनी महान हैं कि किसी व्यक्ति विशेष की गलती को भुला कर भाईचारे में यकीन करने लगी हैं | समझ में आज तक नहीं आया की यही फार्मूला उन्हें गोडसे के मामले में याद क्यूँ नहीं आता | दरअसल गोडसे का नाम उनके लिए गाँधी से भी ज्यादा महत्व रखता है क्यूंकि उसकी चर्चा करके वो कुछ वोट बटोरने में सफल हो जाते हैं | बात बापू की करते हैं और बापू के सिद्धांतों से इन्हें दूर – दूर तक लेना देना नहीं है | बापू समाज को एक देखना चाहते थे और ये सब वोट की खातिर उसे कई टुकड़ों में बाँट चुके हैं | बापू भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे , ये सब आकंठ उसमे डूबे हैं | बापू धर्म और जाति से दूर थे इनका वजूद ही उस पर टिका है | बापू ग्रामीण विकास को सर्व प्रथम मानते थे , इनके लिए गाँव कोई मायने नहीं रखते | क्यूंकि अगर रखते तो आज़ादी के सात दशक बाद भी हमारे देश के हज़ारों गाँव बिजली , पानी , सड़क , शिक्षा , स्वास्थय और सामान्य विकास से वंचित न होते | हर साल हज़ारो ग्रामीण आत्महत्या न कर रहे होते | और सच मानिये ये सब पिछले ढाई वर्षों में नहीं हुआ है बल्कि  पिछले सत्तर सालों से ऐसा ही हो रहा है |

इन्तहा तो ये है की अब अधिकांश  कांग्रेसी तक गाँधी टोपी गाँधी जयंती और गाँधी जी की पुण्यतिथि तक पर नहीं पहनते | यकीन न आये तो उस तस्वीर को देख लीजिये जिसमे हमारे प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर रहे हैं |

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