गुरमेहर के बहाने

gur

दिल्ली विश्व विद्यालय के रामजस कॉलेज की गुरमेहर कौर इन दिनों वामपंथियों को अचानक बहुत ही बहुमूल्य लगने लगी है | बेटियां तो वैसे हर किसी के लिए बहुमूल्य होती हैं और होनी चाहिए लेकिन वामपंथियों का गुरमेहर प्रेम कुछ “ज्यादा ” और कुछ ” अलग ” है | गुरमेहर को जिस किसी ने भी बलात्कार की या उस पर अन्य किसी ढंग से हमला कर उसे बर्बाद करने की धमकी दी है उसे निर्विवाद रूप से सलाखों के पीछे होना चाहिए और वो चाहे जो भी हो सख्त से सख्त सज़ा का ही हक़दार है | इस बात से शायद ही कोई हिन्दुस्तानी इनकार करेगा की अपनी विचारधारा न मानने पर लोगों को अपमानित करने या फिर उनका जीवन बर्बाद करने की धमकी देने वाले को खुला छोड़ देना चाहिए |

गुरमेहर ने ठीक कहा कि उसने अपना विरोध दर्ज कर दिया और वह किसी दवाब में नहीं आने वाली लेकिन उसने साथ ही यह भी कहा है कि ” अब बस” |वह जालंधर लौट गई है | उसके दादा ने भी इस पूरी घटना पर दुःख ज़ाहिर किया है और आश्चर्य भी |उनके हिसाब से मेहर ने अपनी बात कह दी है , हिंदुस्तान की बेटियों को जितनी बहादुरी दिखानी चाहिए उसने दिखा दी है , लेकिन इस घटना को राजनीति का मसाला और राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश को तत्काल समाप्त कर देने की अपील भी उन्होंने की है |जिस सेमीनार के बहाने यह सब कुछ हुआ उसके ” विद्वान् ” आयोजकों की नज़र में कन्हैया कुमार और उमर खालिद देश के सबसे “ओजस्वी और प्रखर ” स्टूडेंट हो सकते हैं पर उनकी इस बात को देश का युवा वर्ग और देश के छात्र कितना मानते हैं उसका आंकलन भी वे कर लेते तो बेहतर होता | गुरमेर की आड़  में नरेन्द्र मोदी सरकार पर हमले होने लगेंगे | सीता राम येचुरी और डी राजा  जैसे वामपंथी और राहुल गांधी जैसे कांग्रेसी  नेता फ़ौरन वहां पहुँच कर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश में लग जायेंगे |इन नेताओं की मौजूदगी में कश्मीर के आतंकियों और मणिपुर की आज़ादी के नारे लगने लगेंगे और गुरमेहर कहीं पीछे , बहुत पीछे छूट जायेगी | अब वो अपने घर लौट गई है और शायद कुछ ही दिन में लौट भी आएगी लेकिन उसके ये ” जान से भी ज्यादा प्रिय समर्थक” चिल्ला – चिल्ला कर उसे तत्काल लौट आने को कहने की होड़ में लग गए हैं |मेहर महज़ बीस वर्ष की है और कारगिल के युद्ध में अपने पिता की शहादत को अपने ढंग से ले रही है | उसने शायद १९६२ , १९६५ और १९७१ में क्रमशः चीन और पाकिस्तान से हुए युद्ध के बारे में सुना नहीं या फिर ये नहीं सोचा की उसमे भी हज़ारों भारतीय सैनिकों ने अपनी जान देकर भारतीय तिरंगे के गौरव को बढ़ाया था |हां , ये बात अलग है की उस वक़्त सरकार कांग्रेस की थी | ये बात शायद राहुल गाँधी को भी पता नहीं होगी वर्ना वे उसके लिए भी चीन और पाकिस्तान को क्लीन चिट देकर तात्कालिक सरकार पर युद्ध थोपने का आरोप मढने से बाज़ नहीं आते |

बहरहाल , कन्हैय्या और उमर खालिद जैसो को छात्रों का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता और देश का भविष्य बताने वाले देश के कतिपय ” महान ” नेताओं को इतना तो सोचना ही पड़ेगा कि खालिद और कन्हैय्या वामपंथियों के लिए भी सिर्फ मोहरे ही हैं | इन दोनों ने तो देश के इतिहास – भूगोल को भी कायदे से नहीं पढ़ा है | न ही इन्हें देश के क़ानून की कोई जानकारी है | अगर होती तो खालिद ये न कहता कि ,”सुप्रीम कोर्ट के जज कौन होते हैं अफज़ल गुरु को सजा सुनाने वाले ” | कन्हैय्या ये न कहता कि १९८४ के दंगों से कहीं बड़ा था गुजरात दंगा | बहरहाल , बात  इतनी सी है कि गुरमेहर के बहाने मोदी को कोसना और भारत के खिलाफ नारे बाज़ी करने वालों का महिमा मंडन करना किसी भी नज़रिए से देशहित में नहीं है | कैम्पस में पहुँच कर छात्र राजनीति के बहाने अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करना बेहद घृणित है क्यूंकि ऐसा करने वाले देश के ” महान और बड़े बड़े नेता ” छात्र राजनीती को विकृत कर दो धडों को लड़ाने का ही काम करते हैं | इनमे अधिकांश नेता वही हैं जो अपराध या अपराधियों का फतवा “बैनर ” देख कर देते हैं | शायद यही वज़ह है कि , हमारे देश में बड़े से बड़ा अपराध और बड़ी से बड़ी समस्या भी सिर्फ राजनीतिक जुमलेबाजी में उलझ कर दम तोड़ देती है | जरूरत है गुरमेहर जैसी बेटियों का हौसला बढाने की | उन्हें यह समझाने की , कि ये देश उनका अपना है और हर हाल में पाकिस्तान से सौ गुना बेहतर | और वैसे भी शहीदों के अधिकार और सम्मान के लिए उन्हें घडियाली आंसू बहाने का कोई नैतिक हक नहीं है जो आज तक भगत सिंह , अशफाक उल्ला और चन्द्र शेखर आज़ाद जैसों को भी शहीद का दर्ज़ा देने से कतराते रहे हैं |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share via
Copy link
Powered by Social Snap