तलाक पर तकरार ……..
आजकल हमारे देश में हर मजहब और हर तबके के लोगों की नज़र इस बात पर टिकी है कि तीन तलाक का मुद्दा कब और कैसे सुलझता है | ये सुलझेगा भी या नहीं | हर समस्या की तरह इस मुद्दे को भी लेना होगा , समझना होगा और सुलझाना होगा | इसके लिए न तो राजनीतिक चश्मा लगाना होगा और न ही धार्मिक | ये मसला पूरी तरह से इंसानी है और इसका फैसला भी इंसानियत की तराजू पर ही होना चाहिए | आज ये काफी संवेदनशील इसलिए बन गया क्यूंकि इसे राजनीतिक चश्मे के साथ -साथ कट्टरपंथी नज़रिए से देखा और परखा जा रहा है | इस मसले को पुरजोर तरीके से भाजपा ने उठाया है तो ज़ाहिर है अन्य राजनीतिक पार्टियां धर्म निरपेक्षता की आड़ में इसका विरोध करेंगी ही | उन्हें इस बात से कोई लेना – देना नहीं कि ” तलाक तलाक तलाक ” नाम का चाबुक कितनी गहरी चोट देता है | तमाम जिंदगियां इसकी मार से सिसक – सिसक कर दम तोड़ देती हैं | राजनीतिक दलों को चिंता है कि उनका दशकों पुराना वोट बैंक खिसक – दरक रहा है |उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम के बाद तो उनकी नींद हराम हो गई है | भाजपा पर धार्मिक कट्टरता का आरोप लगाकर वो सब अपने वोट बैंक को बचाने की कोशिश में जी जान से लग गए है | कुरान , हदीस और शरियत का हवाला देकर महिलाओं को उनके इंसानी और जायज अधिकारों से दूर रखने वाले धर्म के ढेकेदार चीख – चीख कर आसमान सर पर उठा ले रहे हैं ताकि उनकी वो दुकाने चलती रहें जिनका इस्लाम या फिर इंसानियत से कुछ लेना – देना नहीं |मज़हब इंसान को रास्ता दिखाने के लिए होता है , उसका रास्ता रोकने के लिए नहीं | हिन्दू धर्म सहित दुनिया का शायद ही कोई धर्म हो जिसने बदलते वक़्त के साथ अपना नजरिया न बदला हो | अगर ऐसा न होता तो आज भारत के मंदिरों में वे पुजारी नहीं होते जिन्हें एक ज़माने में मंदिर के रास्ते पर कदम रखने की इजाजत नहीं थी | आज महिलाए सिर्फ पूजा नहीं करवा रही हैं बल्कि कर्मकांड तक बिना किसी रोक – टोक के करवा रही हैं | अगर हम धर्म ग्रंथों की परिभाषा में उलझे रहते तो यह बदलाव कभी नहीं आता | वैसे भी काल और धर्म के अनुसार परिभाषाएं बदल जाती हैं , उन्हें बदल जाना चाहिए |दुनिया के तमाम ऐसे देश हैं जहाँ इस्लाम धर्म है लेकिन वहां तीन तलाक़ पर पाबंदी है | वहां भी कुरान पढ़ी जाती है ,पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़ी जाती है , हदीस भी है और शरियत भी |अब हमारे देश के कट्टरपंथी मौलवी – मुल्ला उन देशों के बाशिंदों को मुसलमान मानने से इनकार कर दें तो अलग बात है | हमारे देश में हर धर्म में लड़कियों के घर से निकलने और पढने लिखने पर पाबंदी थी | मासिक धर्म के दौरान उन्हें अछूत समझा जाता था | सती प्रथा और बाल विवाह के नाम पर उनके साथ ज्यादती होती थी |पुरुषों के साथ उनके पढने और काम करने पर पाबंदी थी |इन सब के अलावा ढेर सारी ऐसी बंदिशें जो पुरुषों पर नहीं सिर्फ महिलाओं पर थी | उन सब के बारे में भी धर्म और धर्म ग्रंथों की थोथी दलीलें डी जाती थी |
ज़रा सोचिये अगर हमारे देश के निर्माण में जुटे नेता , धर्मगुरु , समाजसेवी और तमाम आम और खास लोग अपना नजरिया न बदलते तो हमारे देश की शक्ल कितनी बदसूरत होती | शायद ही कोई धर्म ऐसा हो जिनकी महिलाओं ने भारत का नाम बुलंदियों पर न पंहुचाया हो या फिर ना पंहुचा रही हों | ऐसी सूरत में इस्लाम की आड़ में महिलाओं पर ये जुल्म कब तक |कोई फेस बुक पर , कोई फ़ोन पर , कोई मुह पर ,” तलाक तलाक तलाक ” का थप्पड़ जड़ देता है |इससे एक साथ कई जिंदगियां बर्बाद होती है | इसे तत्काल रोकने की जरूरत है , और इसके लिए सभी को आगे आना होगा | कुछ कट्टर पंथी नहीं भी मानेगे तो भी बदलाव आएगा , क्यूंकि जो सही है धर्म और समाज उसी का साथ देता रहा है और देगा |