तुलना करें मगर नाप – तौल कर ….
मीडिया में तुलनात्मक अध्यन का होना अच्छा भी है और ज़रूरी भी लेकिन उसमे भी एक संतुलन बेहद ज़रूरी है और वो भी पूरी ईमानदारी से | आजकल प्रिंट मीडिया , इलेक्ट्रानिक मीडिया ,ऑडियो मीडिया , वेब मीडिया , यानी कि सभी में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली की धूम है | होनी भी चाहिए क्यूंकि यह खिलाड़ी है ही विलक्षण | विगत डेढ़ – दो वर्षों से तो इस खिलाड़ी ने खेल की परिभाषा ही बदल दी है | मैं यहाँ उनकी बेमिसाल बैटिंग और उन रिकार्ड्स की बात नहीं करूँगा जिसे वो रोज़ तोड़ कर आंकड़े बाजों की नींद हराम कर रहे हैं | मैं उन रिकार्डों के टूटने के बाद उस तुलना की करूंगा जो मीडिया द्वारा की जा रही है , या फिर जिस ढंग से की जा रही है | मीडिया में प्रशंसा और आलोचना कभी भी संतुलित ढंग से नहीं की जा रही है जिसकी सख्त जरूरत है | चार मैच अच्छा खेला तो आसमान पर बैठा देते हैं और दो मैच खराब गया तो ज़मीन पर पटक देते हैं |
विराट कोहली बेशक एक ऐसे खिलाड़ी बन गए हैं जिसने भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है | रिकार्ड्स तो ऐसे तोड़ रहे हैं जैसे हमारे – आपके घर में कोई बच्चा क्राकरी तोड़ता है | हर भारतीय और खासकर खेलप्रेमी इन दिनों इनकी उपलब्धियों पर न सिर्फ गर्व कर रहा है बल्कि उसका आनंद भी उठा रहा है | ऐसे में दिल से से यही दुआ निकलती है कि …” सौ साल तक रहे ये ज़माना बहार का “ | अभी कल ही कोहली के शानदार रिकार्डों की सूची में एक और नायाब रिकार्ड और जुड़ गया और वो है लगातार चार सीरीज में दोहरा शतक जड़ने का | कोहली से पहले दुनिया का कोई भी क्रिकेटर यह कारनामा नहीं कर सका है , यहाँ तक कि महान ऑस्ट्रलियाई बल्लेबाज़ सर डान ब्रैडमैन भी नहीं | मीडिया ने इस खबर को व्यापकता में छापा भी है और दिखाया भी है | यह ज़रूरी भी था | लेकिन यहाँ हम उस तुलना की बात कर रहें हैं जो मीडिया प्रतिनिधि और पत्रकार होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है |
किसी भी खिलाड़ी की उपलब्धि को कभी भी इतना महिमामंडित न करें कि दूसरा महान खिलाड़ी लोगों को तुच्छ लगने लग जाए | जब हम यह लिखते हैं या फिर दिखाते हैं कि , इसने रिकार्ड बनाया और इसका रिकार्ड टूटा तो निश्चित ही उसमे एक सम्मानजनक संतुलन और व्याख्या ज़रूरी है | विगत सौ वर्षों में कई ऐसे दिग्गज खिलाड़ी हुए हैं जिनसे नयी पीढ़ी प्रेरित होती रही है और प्रेरित होती रहेगी | हमें उन महान खिलाड़ियों की उपलब्धियों का सम्मान हमेशा वैसे ही करना चाहिए जिसके वे बराबर हक़दार रहेंगे | इसकी कई खास वजह है | पहली तो ये कि , उस महान खिलाड़ी के रिकार्ड को तोड़कर ही हम महान बनते हैं | दूसरी ये की उस वक़्त के हालात और नियम दूसरे थे | उस ज़माने में कितनी क्रिकेट होती थी ये हम सभी जानते हैं | एक साल में इतनी टेस्ट सीरीज , वन डे सीरीज और टी -२० सीरीज तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था | ज़ाहिर है ऐसे में मौके भी कम ही होते थे | सर डान ब्रैडमैन , सुनील गावस्कर , सचिन तेंदुलकर , राहुल द्रविड़ , सर गारफील्ड सोबर्स , ब्रायन लारा , हनीफ मोहम्मद , जावेद मिंयादाद , सईद अनवर , रोहन कन्हाई , सर लेन हटन , ज्याफ बायकाट और न जाने ऐसे कितने ही नाम हैं जो अपने आप में बल्लेबाजी के विश्व विद्यालय हैं | क्या गावस्कर की दक्षता से आज के बल्लेबाज़ तेज गेंदबाजी को बिना हेलमेट और दर्ज़नो पैड लगाए बगैर खेल सकेंगे | इस महान बल्लेबाज़ ने वेस्ट इंडीज की तेज़ पिचों पर जिस ढंग से गार्नर , मार्शल , होल्डिंग , एंडी राबर्ट्स और क्राफ्ट की बखिया उधेडी थी क्या वो किसी महानतम बल्लेबाज़ से नीचे के खिलाडी के बस की बात है | बायकाट की धैर्य पूर्ण बल्लेबाजी , मियांदाद की तकनीक और उनकी आक्रामकता को हम कम कर के अंक सकेंगे | तेंदुलकर जैसा बनना तो दुनिया के हर क्रिकेटर का सपना रहेगा और उस वक़्त तक रहेगा जब तक क्रिकेट का वजूद रहेगा |
कभी आप विराट कोहली या धोनी जैसे बेमिसाल खिलाडियों से पूछ कर देखें , उन्हें भी तुलना पसंद नहीं आएगी और खासकर इस ढंग से की गई तुलना तो उन्हें कतई पसंद नहीं आएगी |