देश के घून : प्रशासनिक अधिकारी
सूबेदार जी की कलम से
मुझे लगता है की भारत में प्रशासनिक अधिकारीयों की परंपरा पर विचार कराने का समय आ गया है . क्योंकि इनकी कार्य प्रणाली बड़ा ही लचर एवं भ्रष्टाचार पूर्ण है .आजतो जब मैं प्रशासनिक अधिकारियों को देख कर मुझे महर्षि दयानन्द सरस्वती की बहुत याद आ रही है .
वे महाभारत युद्ध मे समाप्त हुए विद्वान आचार्यों की प्रतिमूर्ति थे. जहां वे यज्ञवाल्क्य के समान विद्वान थे वहीं चाणक्य के समान राजनीतिज्ञ भी थे, उन्होने इस्लाम व ईसाइयत से संघर्षरत भारत को खड़ा करने का प्रयत्न ही नहीं किया बल्कि भारत वर्ष के राजे -महराजों से मिलकर देश आज़ाद करने का संकल्प लिया, वे ‘स्वामी विरजानन्द’ के शिष्य थे जो जन्मांध थे. उनमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी . वे वेदों के विद्वान थे, उन्होने अपने शिष्य दयानन्द सरस्वती की शिक्षा समाप्त होने पर उनसे दक्षिणा मे देशोद्धार का वचन लिया .
स्वामी जी अपने गुरु के आदेश के पालन हेतु देश का भ्रमण कर तत्कालीन राजा-महाराजाओं से मिलकर 1857 की क्रांति का सफल उद्घोष किया. कुछ लोग कहते हैं की यह असफल क्रांति थी लेकिन यह एक सफल क्रांति थी जिससे हिन्दुत्व व आज़ादी की चिंगारी देशभर मे फैल गयी –।1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात अंग्रेजों ने देखा की गाँव-गाँव मे गुरुकुल है जिनके कारण पूरा देश खड़ा हो गया , अंग्रेजों को लग गया कि पढ़े लिखे लोग एवं गुरुकुलों को जब तक समाप्त नहीं किया जाएगा तब तक यहाँ जड़ जमाना कठिन है .फिर योजनाबद्ध तरीके से भारी संख्यां में ऐसे लोगों की हत्याएं की गई .पेड़ो से लटका कर लोगों की सरेआम फांसी दी गई जिससे आम लोगो के मन में भय व्याप्त हो गया .
अंग्रेजों को पता था भारत मे साधू-संतों के प्रति जनता मे आस्था है यदि हमने साधुओं को छेड़ा तो भारी पड़ सकता है तो बड़ी ही योजना अनुसार एक अँग्रेजी पढे लिखे व्यक्ति को कलकत्ता भेज अंग्रेजों के प्रति लोगों के मन में अच्छी भावनाओं का बीज बोना शुरू किया . इसाई धर्म के प्रति लोगो के मन में आकर्षण पैदा करवाया .ब्रम्हा समाज और कुछ पुराने ब्रिटिश अधिकारी जो यह चाहते थे कि यहाँ लंबे समय तक अंग्रेजों का शासन रहना चाहिए उन्होने मिलकर कांग्रेस पार्टी नाम का एक संगठन खड़ा किया पहले जिसमे ब्रांहासमाजी, भारतीय ईसाई को शामिल किया जाता था जो चर्च से गाइड होता था. उस समय किसी भी आर्यसमाजी को कांग्रेस के किसी कार्यक्रम मे बुलाया नहीं जाता था, एक प्रकार से कांग्रेस ब्रिटिश सरकार के शासन को भारत मे स्थायी करने वाली संस्था के रूप मे जानी जाती थी।
स्वामी दयानन्द द्वारा 1857 कि क्रांति सफल न होने के कारण उन्होने संगठित हिन्दू समाज पर बल दिया देश मे घूम-घूम कर देश भक्ति और स्वराज्य का अभियान शुरू किया वे इस दौरान कलकत्ता गए और ब्रम्हा समाज के कार्यालय मे ही ठहरे . वे जानते थे कि “ब्रम्हा समाज” का उदेश्य क्या है ? उनके प्रवचन से ब्रंहासमाजियों को परेशानी होने लगी तभी एक दिन वायसराय के यहाँ से स्वामी जी का बुलावा आ गया कि वायसराय मिलना चाहते हैं . स्वामी जी गए वार्ता मे वायसराय ने पूछा कि स्वामीजी आपका उद्देश्य क्या है ? स्वामीजी ने उत्तर दिया कि स्वराज्य और स्वधर्म और स्पष्ट कर स्वामीजी ने बताया कि वे स्वराज्य की स्थापना करना और ब्रिटिस शासन को उखाड़ फेकना चाहते है . वायसराय को यह अच्छा नहीं लगा. जहां-जहां स्वामी जी जाते वहाँ उन पर सरकार निगरानी रखने लगी .फिर “आर्यसमाज” की स्थापना कर स्वामीजी ने क्रांतिकारियों की श्रृखंला ही खड़ी कर दी, कहीं लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, कहीं लालालाजपत राय, कहीं बिपिंनचंद पाल खड़े हो गए तो कहीं स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने घर वापसी शुरू कर दी तो कहीं “डॉ हेड्गेवार” ने “आरएसएस” की स्थापना कर देश मे स्वधर्म और स्वराज्य की आंधी सी खड़ी कर दी ।
1947 मे देश तो आज़ाद हो गया लेकिन स्वराज्य नहीं मिला वही ब्रिटिश सोच, वही भारतीय जनता पर शासन करने वाली अंग्रेजों की नीति , वही बिना किसी स्वदेशी परिवर्तन के ‘आईएएस- आईपीएस’ अधिकारी जनता के सेवक नहीं जनता के मालिक बन बैठे . जनता जैसे इस्लामिक व ईसाईयत शासन मे पीड़ित थी , आज शासन मे उससे अधिक पीड़ित है . जो जनता के वोट से सत्ता मे आते हैं वे जनता के मालिक बन बैठे है . आईएएस-आईपीएस व अन्य अधिकारी जो व्यूरोकेट हैं , भारत के सुपर शासक हैं .एक प्रकार के भारत मे नये रजवाड़ो का उदय हो गया है .वे भारत के किसी भी स्वदेशी अभियान को अच्छा नहीं मानते .वे भारत को स्वावलंबी होना देखना नहीं चाहते . वे वर्तमान शासक प्रधानमंत्री “नरेन्द्र मोदी” जो “स्वामी दयानन्द” के स्वराज्य डॉ हेडगेवार के विचार के अनुरूप भारत बनाना चाहते हैं इन्हे पसंद नहीं .वे उनके रास्ते मे रोड़ा बनकर खड़े हो रहे हैं . आज एक स्वदेशी सोच वाली सरकार को , जो जनता द्वारा चुनकर आई है ,बरदास्त नहीं कर पा रहे हैं .बैंक अधिकारी, रेलवे अधिकारी अथवा प्रशासनिक अधिकारियों का एक समूह है जो इस जनता की चुनी सरकार को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं .वे हर मोर्चे पर लोकतान्त्रिक सरकार को पराजित करना चाहते हैं क्योंकि वे ब्रम्हा समाज, ऐ ओ हयूम द्वारा बनाई गयी ब्रिटिश सरकार को मजबूत करने वाली कांग्रेस के उपांग हैं ,इस कारण इस विषय पर विचार करने कि आवश्यकता है।
कांग्रेस ने ही इस प्रशासनिक सेवा पद्धति को पनपाया है जिसमे भारतीयता का लेश मात्र भी प्रभाव नहीं है .आज नए परिवेश के अँग्रेजी राजाओं (आईएएस, आईपीएस, ब्यूरोकेट) को समाप्त करने हेतु देश किसी ऋषि दयानन्द सरस्वती का इंतजार कर रहा है .
साभार :दीर्घतमा