भारत के बाहर ऐसे लाखों भारतीय हैं जिनके पास थोड़े-बहुत रुपए होते हैं और उनकी नाराज़गी इस बात से है कि सरकार की तरफ से उनके लिए कोई कारगर विकल्प नहीं सुझाया गया है.
वहीं लंदन में स्थित भारतीय बैंको ने भी साफ़ कह दिया है कि वो इन नोटों को बदलवाने का कोई और रास्ता नहीं बता सकते हैं.कई बैंको ने बाहर ये नोटिस लगाए हुए हैं कि वो भारतीय मुद्रा का लेन देन करते ही नहीं हैं. बैंक ऑफ बड़ोदा के यूरोपीय ऑपरेशन के मुख्य कार्यकारी धीमंत त्रिवेदी ने कहा कि ना तो रिज़र्व बैंक और ना ही सरकार की तरफ़ से उन्हें इससे जुड़े कोई दिशानिर्देश भेजे गए हैं.
उनके मुताबिक़ विदेश में स्थित भारतीय बैंको को सिर्फ विदेशी मुद्रा में ही लेन-देन करने का आदेश है, इसलिए कोई भी भारतीय बैंक इन नोटों का कुछ नहीं कर सकते.
2011 की एक जनगणना के मुताबिक ब्रिटेन में करीब ढाई प्रतिशत आबादी भारतीय लोगों की है और इसका एक बड़ा हिस्सा लंदन में बसा है.
लंदन के वेंबली इलाके में बसे भारतीयों ने बीबीसी को बताया कि वो साल में कम से कम एक बार तो भारत का चक्कर ज़रूर लगाते हैं और इसलिए उनके पास दस से पंद्रह हज़ार रुपए आम तौर पर होते ही हैं.
नोटबंदी के बाद उन्हें ये नहीं पता कि उनकी इस परेशानी का हल किसके पास है. कुछ लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के हाथ पैसे भारत भेज रहे हैं. लेकिन इसमें भी ये साफ नहीं है कि एक शख़्स पच्चीस हज़ार रुपए से ज़्यादा लेकर जा सकता है या नहीं.
एक महिला ने बताया कि वो क़रीब पैंतालीस हज़ार रुपए लेकर दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचीं, जहां कस्टम के अधिकारियों ने उनसे चालीस हज़ार रुपए ले लिए. उनसे कहा गया कि वो सिर्फ पाँच हज़ार रुपए ही एयरपोर्ट से बाहर ले जा सकती हैं.
भारतीय रिज़र्व बैंक ने बीबीसी को मेल के ज़रिए बताया कि वो इस समस्या पर विचार कर रहा है और उसे इसका समाधान करने में थोड़ा वक्त और लगेगा.
एक सुझाव है कि विदेश में भारतीय बैंक लोगों को उनकी रक़म के बदले रसीद दें, जिसे बाद में भारत में बैंकों में दिखाकर लोग अपनी रक़म हासिल कर सकें.
जहां एक तरफ़ लंदन में बसे कुछ भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के इस क़दम की सराहना कर रहें है, कुछ उनसे नाराज़ भी हैं.
ऐसा इसीलिए कि उनके पास पर्याप्त विकल्प नहीं हैं. अब देखना ये है कि विदेश में बसे अपने प्रशंसकों को राहत पहुंचाने के लिए क्या प्रघानमंत्री कोई कदम उठाते हैं?
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