बापू के मंच से मोदी पर निशाना
अवसर था चंपारण शताब्दी समारोह और याद करना था राष्ट्रपिता को , उनके सिद्धांतों की बात होनी थी , उनके सपनो के भारत की बात होनी थी , उनके त्याग और आदर्शों की बात होनी थी | मंच पर थे बापू के पौत्र तुषार गाँधी , प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ . अशोक वाजपेयी , प्रदेश के उप – मुख्य मंत्री तेजस्वी यादव , के . वी . राजू और डॉ .शैवाल गुप्ता जैसी बड़ी -बड़ी हस्तियाँ | उम्मीद थी कुछ ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी जिससे कुछ नई जानकारी मिलेगी , जिसमे तुच्छ राजनीति की झलक नहीं होगी , मंच का उपयोग साफ़ – सुथरी और ऐसी बातों के लिए होगा जिनसे राजनीति की बदबू न आ रही हो | मगर हुआ उल्टा , निशाने पर परोक्ष और प्रयत्क्ष दोनों ही रूप से रही भाजपा और रहे देश के मौजूदा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी | शायद इन विद्वानों की इस हरकत और मानसिकता ने बापू की आत्मा को काफी कष्ट पंहुचाया होगा | तेजस्वी यादव ने इस बात पर जोर दिया कि दक्षिण पंथी विचारधारा के लोगो और ऐसी सोच वाली पार्टियों को वोट न दें , उनका समर्थन न करें |उन्होंने कहा कि , यदि ऐसा न हुआ तो देश के टुकड़े हो जायेंगे | अब इनसे पूछने की सख्त जरूरत है की जब देश के टुकड़े हुए थे उस वक़्त देश में कौन सी विचार धारा चरम पर थी |डॉ . अशोक वाजपेयी तो अपनी एकपक्षीय सोच से हटने को कतई तैयार नहीं |उन्हें विगत तीन वर्षों में देश गर्त में जाता नज़र आ रहा है | देश का माहौल उन्हें बेहद खतरनाक और दमघोटू लगता है | उनके हिसाब से हर तरफ हिंषा और असहिष्णुता का बोलबाला है |डॉ . वाजपेयी को शायद यह ग़लतफ़हमी है कि देश में सिर्फ वही एकमात्र शिक्षित हैं जिनमे अच्छा -बुरा समझने की अक्ल है | सिर्फ वही आंखे खोल कर चलते हैं या फिर वो लोग जो उनके चश्मे से हर चीज को देखते है |डॉ . अशोक वाजपेयी जैसे तमाम विद्वानों से मैं ये कहना चाहता हूँ कि इस देश में करोड़ों ऐसे समझदार और शिक्षित हैं जिन्हें आपके प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं | जो लोग बापू को आपसे बेहतर जानते और समझते हैं | रही सहिष्णुता की बात तो उसका इतना प्रमाण पर्याप्त है की , इस देश में ऐसे लोग भी आज़ादी से जी रहे हैं और ज़िंदा हैं जो आये दिन माता कौशल्या , माता सीता , माँ दुर्गा और भगवान् श्रीकृष्ण के लिए आपत्तिजनक बातें करते रहते हैं |अच्छा होता अगर आप बापू के आदर्शों और चंपारण सत्याग्रह पर प्रकाश डाल कर लोगो को कुछ सार्थक देते |वैसे आप जैसे लोगों से ज्यादा उम्मीद करना भी बेकार ही है क्यूंकि १९४७ से आज तक देश में हुए हज़ारों दंगे या फिर १९८४ के देश व्यापी दंगे और उनके सूत्रधारों के बारे में आपकी याददाश्त अक्सर दगा दे जाती है ,याद रह जाता है तो सिर्फ गुजरात |
इन सबकी बातों पर न तो आश्चर्य हुआ न दुःख कुंकी इनकी सोच एक सीमा के आगे जा ही नहीं सकती | ताज्जुब तो बापू के पौत्र तुषार गाँधी की बातों को सुनकर हुआ जिसमे वो एक विपक्षी पार्टी के वक्ता से ज्यादा कुछ भी नज़र नहीं आये |ऐसा लगा मानो वह मंच का इस्तेमाल नीतीश और लालू के एजेंडे को बढाने के लिए कर रहे हों |उन्हें सुनकर सचमुच निराशा हुई | बेहतर होता अगर वो बापू के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते |अगर वो ये कहते की बापू ने कभी अपने और अपने परिवार की खुशहाली और भविष्य की चिंता नहीं की बल्कि देश ही उनके लिए सर्वोपरि था , अगर तुषार ये कहते कि चारा घोटाले के नायकों की बापू की नज़र में कोई जगह नहीं थी , या फिर प्रान्त में घोटालों का अम्बार लगा देने वालों को बापू का नाम लेने का हक नहीं , तो बात बनती और लगता कि तुषार गाँधी बोल रहे हैं | लेकिन ऐसा नहीं हुआ |वे राजद और जद यू के प्रवक्ता ज्यादा नज़र आये | अफ़सोस हुआ कि इतने बड़े और पवित्र मंच का इस्तेमाल निहायत ही तुच्छ और सीमित स्वार्थ के लिए किया गया | वैसे इन सब हरकतों ने मोदी का कद और बढ़ा दिया है |