बिखरा बिखरा विपक्ष

opposition

लोकतंत्र की आजादी और खूबसूरती है सशक्त  और एकजुट विपक्ष | दुर्भाग्यवश नेतृत्व के संकट ने इसे बेहद कमजोर और दिशाहीन बना रखा है | केंद्र सरकार को जमकर कोसने वाली पार्टियों  के नेताओं के पास एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसे व्यापक लोक समर्थन मिल सके | उन सब की स्वीकार्यता एक क्षेत्र विशेष , जाति विशेष या फिर उनके राज्य तक सिमटी हुई  है |

मोदी सरकार ने लगभग ढाई वर्ष पूरे कर लिए हैं और वो भी भ्रष्ट्राचार मुक्त | कई दशकों के बाद देश की जनता एक ऐसी सरकार , एक ऐसा प्रधानमंत्री देख रही है जो भ्रष्टाचार में लिप्त होने की जगह देश को उससे मुक्ति दिलाने के लिए सार्थक और गंभीर प्रयास कर रहा है | नरेन्द्र मोदी सरकार को कोसने भर से देश का भला नहीं होने वाला | विपक्ष को जनता के प्रति जवाबदेही निभानी होगी |उसे बताना होगा कि मोदी से पहले किसी अन्य प्रधानमंत्री ने ऐसे साहसिक कदम क्यूँ नहीं उठाये , जो देशहित में होने के साथ साथ केंद्र सरकार  को निरंतर सशक्त बनाने का भी काम करे | कांग्रेस की बात करें तो उसके सांसदों ने सदन में हंगामा करके , उसे ठप्प करके अपना ही नुकसान किया है |आम जनता उसके इस कदम से प्रभावित होने की बजाय उससे ज्यादा त्रस्त हो चुकी है | राहुल गाँधी , गुलाम नबी आजाद और चिदम्बरम जैसे कांग्रेसी दिग्गज संसद में कुछ पार्टिओं को हंगामे में अपने साथ जोड़ने और उसे न चलने देने में सफल रहे | मोदी को तमाम उपनामों से अलंकृत भी करते दिखे और उसे ही अपनी उपलब्धि मान ली | विपक्ष को कांग्रेस और खासकर राहुल का नेतृत्व कतई मंजूर नहीं यह बात कम से कम २०१६ में तो खुलकर सामने आ चुकी है | हाँ उसे ममता बनर्जी का समर्थन जरुर मिला |तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता दीदी कांग्रेस और वामपंथियों का विरोध करके ही सत्ता में आई हैं | इन दोनों पार्टिओं के अनगिनत भ्रष्टाचारों के खिलाफ दीदी गला फाड़ कर चिल्लाती रही हैं | आज उनके साथ हैं | वैसे भी पश्चिम बंगाल की सीमा में उनकी लोकप्रियता अद्भुत है लेकिन उसके बाहर का आकलन करने में वो स्वयं ज्यादा सक्षम हैं | उनका गुस्सा तो अद्भुत है| बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें नोटबंदी पर समर्थन नहीं दिया तो दीदी ने नीतीशजी को गद्दार घोषित कर दिया |

नीतीश केंद्र सरकार और मोदी का विरोध जरूर करते हैं राहुल गाँधी  ,ममता बनर्जी  या फिर लालू यादव की तरह अंध विरोध नहीं |शायद यही वजह है की जी एस टी,नोटबंदी या फिर पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक को नीतीश ने खुले मंच से अपना समर्थन दिया है |सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव पुरे वर्ष अपने कुनबे की कलह से ही जूझते रहे हैं |मोदी की सरकार को गिराने या उसका विकल्प तलाशने से कहीं ज्यादा चिंता उन्हें अपनी पार्टी और सरकार की है | मायावतीजी भ्रष्टाचार में इतनी डूबी हैं कि आक्रामक होते ही बैकफुट पर आ जाना उनकी मज़बूरी हो जाती है | वामपंथियो ने बंगाल में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़कर अपना हश्र देख लिया है | उन्हें भी अपना वजूद बनाये रखने की चिंता है |

गरज ये की कोई भी पार्टी या ऐसा चेहरा नज़र नहीं आ रहा जो सब को एकजुट कर सके | कोई ऐसा चेहरा नहीं जो सभी को स्वीकार्य हो | इन सभी की हताशा – निराशा साफ झलकती है | यही कारण है की मोदी सरकार को जनता का समर्थन बढ़ता जा रहा है | भारत की अवाम को लगने लगा है कि  बिखरे विपक्ष के वश में नहीं है उन्हें सुरक्षित और उन्नत भविष्य देना| सभी पार्टियाँ तो अपने वजूद की ही चिंता में हैं | ऐसे में निकट भविष्य में और आने वाले वर्षों में मोदी सरकार को हिला पाना बेहद मुश्किल होगा | यह स्थिति निश्चित रूप से लोकतंत्र के लिए बहुत सुखद नहीं | लेकिन लोकतांत्रिक ढंग से काम करने वाली और जनता के हित का ध्यान रखने वाली एक मजबूत सरकार तो दरकार है ही और यह सबकुछ  जनता को नज़र आ रहा है मोदी सरकार में |

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