संविधान–मीठा-मीठा गप कडुवा-कडुवा थू नहीं चलेगा, या तो सभी मुस्लिमों पर सरिया लागू हो —!

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          || सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर नेताओं के अलग विचार ||
          भारत के नेता गण अपना-अपना विचार, पत्रकार सम्मेलन बुलाकर या फिर टीवी चैनलों के माध्यम से दे रहे हैं , हमारे  सुप्रीमकोर्ट ने तीन तलाक पर जो फैसला सुनाया है उस पर कई प्रान्त के मुख्यमंत्री व कई राज नेताओं ने अपना विचार दिया व सुनाया हैं, टीवी में, यहाँ तक की सुप्रीमकोर्ट के खिलाफ भो बोलते दिखाई और सुनाई दे रहे हैं। 
          विचारणीय बात यह है की हमारे भारत वर्ष का जो संविधान है वह सार्वमान्य है सम्पूर्ण भारत वासियों के लिये है, संविधान का अवहेलना अमान्य या अपमान करना दण्डनीय अपराध है, संविधान का सम्मान सभी भारत वासियों के लिये मानना अनिवार्य है, फिर उसी सुप्रीमकोर्ट के आदेश की अवहेलना यह इन नेताओं के लिये क्यों नहीं ? और कैसा संभव हो रहा है यह अफ़सोस की बात है ।
           जो कानून विद हैं {वकील } है उनके द्वारा भी सुप्रीमकोर्ट पर टिप्पणी करना, प बंगाल प्रान्त की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सुप्रीमकोर्ट के ऊपर टिप्पड़ी करना यह संविधान के खिलाफ है. इन लोगो को कितना अधिकार है क्या यह सब उच्चतम न्यायालय व संविधान के ऊपर हैं ? कुछ भी हो मेरा कहना इस पर है कि अभी तीन तलाक पर जो समाचारों में टीवी चेनलों पर चल रहा है, कहीं कहीं चैनलों में लोगों के डिबेट भी देखता हूँ , लगता है यह देश ‘धर्मशाला’ है ! कोई इसका मालिक ही नहीं है जो चाहे वो बोल रहा है। उसे देश व देश के संविधान से कोई मतलब ही नहीं ऐसा कैसा चलेगा? क्या एक समुदाय की महिलाओं के साथ अत्याचार होता रहेगा देश की सरकार, संविधान और उच्चतम न्यायालय चुप बैठा रहेगा ?
         मेरा कहना है, कि क्या हमारे संविधान में यह लिखा है की भारत में रहने वाले मुसलमान रहेंगे भारत में और कानून मानेंगे अरब का ? अगर संविधान में यही लिखा है तो मुसलमानों के उपर इस्लामी कानून लागू करना चाहिए, इस पर किसी की भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए, अगर यह अधिकार उन्हें भारत के संविधान निर्माताओं ने उन्हें दिया है, उस पर आपत्ति जताना अनाधिकार चेष्टा ही कहा जायगा, और अगर भारत के संविधान में यह नही लिखा है, तो भारतीय मुसलमानों को चाहिए की भारत के संविधान को संदेह के दृष्टि से न देख कर उसे सहर्ष स्वीकार करलें, शरीया कानून की मांग नही करनी चाहिए, कारण जब यह व्यवस्था हमारे संविधान में नही दी फिर उस इस्लामी कानून व्यवस्था की मांग क्यों ? यह भारत वासियों को मान्य नही है, और न होना चाहिए, कारण आप रहें भारत में और कानून मानें आप अरब मुस्लिम देश का, तो यह सरासर भारत का अपमान है बेमानी है। 
        आप रहें भारत में और भारतीय कानून को ना मान कर अरबी इस्लामी कानून जो एक देश विशेष की कानून व्यवस्था है उसे आप भारत में लागू करें, इसे भारत क्यों स्वीकार करे ? हमारे देश के नेता गण मात्र अपनी वोट की राजनीती करने के लिये ही इस प्रकार की बयान बाजी कर देश मे भ्रम फैला रहे हैं, और मानव समाज में एकरूपता व मानवीयता को लागू करने के बजाय अमानवीय तरीके से मानव समाज को एक- दूसरे से नफरत पैदा करने को मजबूर कर रहे हैं, जो समाज के लिये घातक है मानव समाज में मैत्रिय भाव पैदा करने के बजाय द्वेष फैलाने का काम हमारे देश के कर्णधार, राजनेता कर रहे हैं जिन्हे देश, संस्कृति और परंपरा से कोई मतलब नहीं है जानकारी भी नहीं है। 
         जो लोग इस्लामी सरिया कानून व्यवस्था की मांग कर रहे हैं, क्या उन्होंने मात्र तलाक देना, हालाला करना, मुत्ताह निकाह व दूसरी शादी करने तक इस्लामी शरीयत कानून को माना है ? अथवा शरीयत में और भी कानून है जिसे मानना चाहिए, शरिया कानून व्यवस्था के लिये कोई मुसलमानों को आज तक मांग करते नही देखा ! जैसा कुरानी कानून व्यवस्था को अल्लाह ने चोरी करने पर हाथ काटने का हुक्म दिया है ! क्या किसी भी मुसलमान जो चोरी में पकड़ा गया उसके हाथ काटे अथवा हाथ कटवाने के लिये किसी भी मुसलिम संगठनों ने अथवा किसी भी मुसलमान ने चोरी करने वाला मुसलमान का हाथ काटने का समर्थन किया ! अथवा किसी राजनेता ने कोर्ट से कहा की यह मुसलमान है शरीयती कानून इस पर लागु करते हुए इसके हाथ काटे जाएँ ? (यह आयत है सूरा मायदा का 38 =अर्थ = चोरी करने वाला मर्द और औरत के हाथ काट दिया करो यह बदला जो उन्होंने किया है यह अल्लाह की तरफ से है और अल्लाह ताला कौवत्त और हिकमत वाला है) अब प्रश्न है क्या भारत में कोई मुसलमान चोरी में पकड़े नही गये, अगर पकडे गये कोई चोर मुसलमान तो उनके हाथ अब तक काटे क्यों नही ? और किसी मुल्ला- मौलवी, आलिम अथवा इस्लामी धर्म गुरु ने उसके हाथ काटने के लिये मांग क्यों नही की ?
           इसका जवाब किनके पास है, सोनिया जी के पास, लालू जी के पास, मुलायम जी के पास, शरद यादव जी के पास, ममता बनर्जी के पास, मायावती के पास या फिर नौटंकीवाज नेता अरविन्द केजरीवाल के पास है ? इस पर क्या कहना है शरीयती कवानीन बोर्ड के अधिकारीयों का ?۔ यह आयत है “=सूरा नूर =का 2 +3= जिनाहकार औरत व मर्द हर एक को सौ कोड़े लगावो इन पर अल्लाह की शरियत की हद जारी करते हुए इन पर रहम ना खाना चाहिये अगर तुम्हें अल्लाह पर और कयामत के दिन पर इमांन हो इनकी सजा के वक्त मुसलमानों की एक जमात मौजूद होनी चाहिए”। 
            अब कोई मुस्लिम संगठन के अधिकारी हो मुस्लिम नेता ओवैसी हो, आजंम खान हो, आमिर खान हो या सलमान खान हो अथवा हमारे देश का कोई भी राजनेता बताएं की इस्लामी शरीया कानून आज तक इन व्यभिचारियों पर भारत में लागु हुवा है ! अथवा किसी ने इन नियमों को लागु करने की बातें की है ? यह जो शरीयती कानून है क्या इस पर हिन्दू अमल करेगा क्या ? इस शरीयती कानून के हिमायती कौन हैं ! यह है शरीयती कानून व्यवस्था इसे मुस्लमान क्यों नही अम्ल करते ? अपितु ससुर जब अपने बेटे की पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध बना कर कई बार व्यभिचार करले और जब गर्भवती हो जाये तो इस्लामी मुफ़्ती गण उस पर फैसला सुनाते हैं, वह बहु अब अपने पति की माँ बन गई जिसके साथ वह शादी होकर आई थी उसे अब बेटा बना दिया गया, जो ससुर को अब्बू बताती कहती रही वह अब शौहर बन गया, हायरे इस्लाम और तुम्हारा इस्लामी कानून शरीयती जिसे कहते हैं लोगों यह कैसा कानून है इस्लामी महिलाओं पर यह अत्याचार नही तो और क्या है ? इस कारण भारत की सरकार, उच्चतम न्यायालय का कर्तब्य वन जाता है कि अपने देश मे एक समान कानून बनाए लागू करे जिससे सभी को समान अधिकार व विकाश का अवसर प्राप्त हो। 
       ” मीठा-मीठा गप कड़ुवा -कड़ुवा थू नहीं चलेगा या तो सभी मुसलमानो पर शरिया कानून लागू हो” ।।    
                               ( प्रसिद्ध वैदिक विद्वान महेन्द्रपाल आर्य )

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