हमहुं तोहार टोपी लगा लेत हैं भैया
स्वामी तुलसी दास ने कितनी बड़ी बात कही है कि –“ पुरुष बली नहीं होत है , समय होत बलवान “ | आज कांग्रेस पर यह बात सबसे ज्यादा सटीक बैठ रही है | देश की सबसे पुरानी पार्टी जिसने छ: दशक तक इस देश पर एकछत्र राज किया आज हर चौखट पर माथा टेक रही है ताकि वह ज़िंदा रह सके | आज की तारीख में वह सपा के द्वार पर है | कल तक उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन और वहां के कुशाशन को पानी पी –पी कर कोसने वाली कांग्रेस अब अखिलेश यादव का दरवाजा खटखटा रही है | दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपना सी एम् प्रत्याशी घोषित भी कर दिया था | साथ ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान भी | इसके बाद उ प्र की राजनीति में एक अप्रत्याशित मोड़ आया | सपा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच मतभेद हुआ जो अपने चरम पर पहुँच गया और अंततः कई मोड़ और पड़ाव से होता हुआ सपा के विभाजन तक पहुँच गया | सपा के जन्मदाता और मुखिया मुलायम सिंह यादव तमाम ड्रामेबाजी के बीच लगभग अकेले पड़ गये | मुलायम से राजनीति का ककहरा सीखने वाले उनके बेटे अखिलेश ने न सिर्फ बगावत की बल्कि सरकार और पार्टी पर अपनी पकड़ और भी मजबूत कर ली |
कांग्रेस ने अपनी औकात समझी | उसे लगा की जो अखिलेश, मुलायम जैसे दिग्गज को पटकनी दे सकते हैं उनके सामने खड़े होने से बेहतर है की उनके साथ हो लिया जाये | बस फिर क्या था जा पहुंची कांग्रेस अखिलेश के दरवाज़े पर | बहाना वही रटा –रटाया …धर्मनिरपेक्षता | नारा भी वही ….”.मोदी के कुशाशन और फासीवादी शक्तिओं से देश को बचाना है “| अखिलेश ने दरवाजा नहीं खोला था मगर कांग्रेस थी की खटखटाए ही जा रही थी | बहरहाल अब दरवाज़ा खुला है | देखना है कि सभी सीटों पर लड़ने का दावा करने वाली कांग्रेस को कितनी सीटों पर लड़ने की इजाजत अखिलेश देते हैं | पहले बिहार , उसके बाद बंगाल और अब उत्तर प्रदेश | कहीं भी अकेले दम पर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है कांग्रेस | वैसे बंगाल में तो वामपंथियों का कबाड़ा कांग्रेस के साथ लड़ने के कारण हो ही चुका है , देखने वाली बात होगी कि सपा को इस गठबंधन से फायदा होता है या फिर नुक्सान |
बहरहाल, इतनी बात तो साफ़ हो चुकी है कि कांग्रेस को अब हर जगह उन्ही पार्टियों के सहारे और उन्ही की शर्तों पर चलना है जिनकी वह आलोचना करती है | अकेले चुनाव लड़ने का न तो उसमे साहस बचा है और न ही उसकी औकात है |