सीधा सवाल देश के नेताओं से ..
हमारे देश में राजनीति का स्तर इतना क्यूँ गिर गया है राजनीतिक पार्टियों के नेता या प्रवक्ता महिलाओं की इज्ज़त – आबरू को भी राजनीति के चश्मे से ही देख रहे हैं | भाजपा नेता विनय कटियार ने प्रियंका गांधी वाड्रा की ख़ूबसूरती पर टिप्पणी क्या कर दी पूरे देश में भूचाल आ गया | हकीकत ये है की उन्होंने एक संवाददाता द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब दिया था | सवाल था कि , ‘ क्या अखिलेश और प्रियंका के नेतृत्व में सपा और कांग्रेस का गठबंधन सोनिया गाँधी और मुलायम सिंह की अगुआई से ज्यादा प्रभावी होगा ‘| विनय कटियार ने इसका जवाब दिया था | हाँ यह बात अलग है कि उन्हें अपनी पार्टी की महिला नेत्रियों की क्षमता और कार्यशैली से प्रियंका की तुलना करनी चाहिए थी | कटियार के इस उत्तर पर देश के तमाम ऐसे नेता जिन्हें भाजपा से सख्त घृणा है एक स्वर में भाजपा को कोसने लगे | भाजपा को महिला विरोधी , बीमार मानसिकता की शिकार और न जाने क्या- क्या कहने में तनिक देर नहीं लगी उन्हें |
मेरे सवाल है ऐसे नेताओं और प्रियंका गांधी वाड्रा से की जब ऐसी ही बातें मुलायम सिंह यादव , आज़म खान , अबू आजमी और शरद यादव जैसे नेता भारत की बेटिओं के लिए कहते हैं तब उन्हें क्या हो जाता है उस वक़्त उन्हें भारत की बेटियों की आबरू का ख्याल क्यूँ नहीं आता | जब लालू प्रसाद बिहार की सड़कों की तुलना हेमा मालिनी के गाल से करते हैं , जब मुलायम सिंह बलात्कारी युवको के जघन्य अपराध को जवानी की छोटी सी भूल बताकर उन्हें माफ़ कर देने की वकालत करते हैं , जब अबू आजमी ऐसी हरकतों को महिलाओं के खिलाफ ऐसी हरकते स्वाभाविक लगती हैं और जब आजम खान हिन्दुस्तान की बेटियों की तुलना गुड से कर ये कहे हैं कि “ जहां गुड होगा वहां चीटियाँ आएँगी ही “ , उसवक्त हमारे तथाकथित सेक्युलर नेताओं को काठ क्यूँ मार जाता है ?
जब शरद यादव देश की बेटियों की इज्जत से कहीं ज्यादा वोट की इज्जत बताते हैं उस वक़्त इन “ महान” नेताओं को क्या हो जाता है | ऐसे बयानों पर देश के इन “ महान “ नेताओं तो तनिक भी देर नहीं लगती यह कहने में कि ,” हमारे नेता का बयान मीडिया ने तोड़ – मरोड़ कर रखा है | या फिर ये कि ये उनकी निजी राय है “| क्या यह दोहरा मानदंड नहीं ? मैं हर पार्टी के नेताओं से सीधा सवाल करता हूँ कि , क्या सिर्फ नेताओं और बड़े अधिकारियों की बहू – बेटियाँ इस देश की इज्ज़त हैं ? गरीब और साधारण लोगों की नियति क्या सिर्फ अखबारों की खबर या पुलिस की फाइल का एक नंबर बनना है | देश में आये दिन हज़ारों बलात्कार होते हैं लेकिन उस पर किसी नेता का बयान तक नहीं आता | क्या इस महान लोकतान्त्रिक देश में बेटियों और माताओं को ऐसे ही राजनीतिक चश्मे से देखा जाता रहेगा | पार्टी देखकर महिलाओं की इज्ज़त और पार्टी देखकर उन्हें बेईज्ज़त करना बंद कीजिए | उन्हें सिर्फ महिला समझाना शुरू करें तो उन्हें भी सुकून मिलेगा | दुर्भाग्य तो यह है की देश के विभिन्न महिला संगठन भी यह देख कर जुलूस और धरना – प्रदर्शन का फैसला करते हैं की पीड़ित महिला या बेटी किस पार्टी से ताल्लुक रखती है | महिलायें सिर्फ महिलायें हैं , उन्हें धर्म-जाति , अमीर – गरीब या फिर राजनितिक पार्टी से उनके जुड़ाव के आधार पर मत आंकिये | अगर आप सब इतने संवेदनशील हो सके तो यकीन मानिए आप देश पर बड़ा उपकार करेंगे | शायद तब इस देश की महिलाओं की इज्ज़त – आबरू सही मायने में महफूज़ हो सकेगी | नज़र बदलिए , नज़रिया बदलिए , देश का नज़ारा अपने आप बदल जाएगा |