सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं निर्देश है ये …..

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अयोध्या में विवादित ढाँचे के विध्वंस के २५ साल बाद देश के उच्चतम न्यायालय ने भाजपा और विहिप के १४ नेताओं पर आपराधिक साजिश रचने और लोगों को भड़काने का मुकदमा चलाने का निर्देश ज़ारी किया है| सी बी आई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं को आरोपमुक्त करने का इलाहबाद हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया |लखनऊ की सत्र अदालत में मुक़दमे की सुनवाई रोजाना करने को कहा गया है और दो साल की अवधि में इसे पूरा करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है |सी बी आई ने २०११ में इस आशय की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी |इसमें भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्णा आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी , केन्द्रीय मंत्री उमा भारती , विनय कटियार और कल्याण सिंह प्रमुख हैं | कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल हैं अतः फिलहाल उन पर मुकदमा नहीं चलेगा |लोगों को ऐसा लग रहा था कि केंद्र में भी भाजपा की सरकार है और उत्तर प्रदेश में भी अतः इस मामले को दबा दिया जाएगा और सी बी आई की नहीं सुनी जाएगी | विपक्षी दलों के नेता कई अवसरों पर इस तरह की बयानबाजी भी करते रहे हैं |अब शायद उन्हें यह कहने का मौका न मिले कि , मोदी सरकार धर्म विशेष की है और सी बी आई तथा कोर्ट दोनों उसके इशारों पर नाचते हैं | पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव केबाद से इन दलों ने चुनाव आयोग पर कुछ ऐसे ही आधारहीन और घटिया आरोप लगाए हैं | बहरहाल ,अब जबकी आडवाणीजी सहित इतने बड़े बड़े नाम इस सूची में आ गए हैं तो भेद – भाव का आरोप लगाना कठिन होगा |अब तो रोजाना होने वाली सुनवाई और गवाही से यह बात साफ़ होगी की इन नेताओं का दोष किस श्रेणी का था |ये सभी उस आन्दोलन को समर्थन दे रहे थे या लोगों को भड़का रहे थे इसका खुलासा कोर्ट की कार्यवाही के बाद ही होगा |वैसे भी उस वक़्त एक लाख लोगों से ज्यादा पर ऍफ़ आई आर दर्ज की गई थी |
केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने साफ़ कहा है कि ६ दिसंबर १९९२ को जो हुआ वह खुल्लम – खुल्ला था अतः साज़िश का सवाल ही पैदा नहीं होता |ऐसा ही बयान साध्वी ऋतंभरा ने भी दिया है |कांग्रेस और विपक्ष के कुछ नेताओं ने उमा भारती का इस्तीफा माँगा है | ये वही नेता और ये वही पार्टियाँ हैं जिनके ढेरों मंत्री और मुख्यमंत्री तक विभिन्न आरोपों से घिरे हैं और अपने पद पर बने हुए हैं |कांग्रेस के लोग शायद यह भूल गए हैं कि संप्रग सरकार के दौरान देश के प्रधान मंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि , ” आरोप लगने से कोई दोषी नहीं हो जाता “|बहरहाल, हर भारतीय को इस पूरे मामले में समझदारी से काम लेने और कोर्ट की कारवाई तथा उसके फैसले का इंतज़ार करना चाहिए जो निश्चित ही निष्पक्ष होगा | सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आडवाणीजी से भी ज्यादा “परेशान और दुखी ” उनके सबसे बड़े “शुभचिंतक” राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव नज़र आ रहे हैं |ये वही लालू प्रसाद हैं जिन्होंने आडवाणीजी का रथ रोककर मुस्लिमों की वाहवाही लूटी थी और तब से अब तक अपने को न सिर्फ उनका वोट बटोर रहे हैं बल्कि अपने आप को “अल्पसंख्यकों का मसीहा” घोषित कर रखा है |लालूजी को इस पूरे प्रकरण में मोदी की सियासी चाल नज़र आ रही है |अगर इन सब पर मुकदमा नहीं चलता तो भी लालू यही आरोप लगते , कि मोदी ने सुप्रीम कोर्ट से कह कर मुकदमा दबा दिया और अल्पसंख्यकों के साथ नाइंसाफी की |बहरहाल , लालू या उन जैसे नेता कुछ भी कहें , सच यह है मोदी सरकार ने साबित कर दिया है कि सच की कसौटी पर खरा उतरने के लिए उसे किसी भी तरह के इम्तिहान से कोई परहेज़ नहीं है |वैसे भी अब तक के सभी साक्ष्य यही प्रमाणित करते हैं कि इन नेताओं ने कोई उकसाऊ या भड़काऊ भासन नहीं दिया और न ही कोई साजिश रची |रही बात बाकी सच की तो पूरा देश दो वर्षों के बाद उससे भी वाकिफ हो जाएगा |इंतज़ार कीजिये कोर्त्मे होने वाली सुनवाई और आने वाले फैसले का |

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