स्टेपनी बनने की बेचारगी का एहसास

unnamed (33)उत्तर प्रदेश की चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की हुई है दोस्ती,दरअसल बहुत हद तक बिहार में गठबन्धन को मिली सफलता का ये प्रभाव भी है।मगर इन सबके बीच कांग्रेस खुद में कैसे कमजोर हो रही है और पार्टी के नेताओं को कैसे है इसका एहसास,इसकी झलक बिहार प्रदेश कांग्रेस की बैठक में देखने को मिली।जहाँ प्रदेश अध्यक्ष समझ रहे की अकेले हमारी हैसियत विधायक बनने की नही।
मुद्दा तो था नोटबन्दी और बीजेपी को घेरने को लेकर आगे की रणनीति पर मंत्रणा करने का,मगर इस बैठक में दर्द छलका कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का।बिहार मे महागठबंधन की सरकार है और इसमें कांग्रेस भी सहयोगी की भूमिका में,40 सीट पर चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के पास 27 विधायक हैं।मगर बिहार कांग्रेस के आंतरिक कलह और विधायक बनने के लिए नीतीश कुमार और लालू यादव  के मजबूत कन्धे का एहसास भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को है।और कैसे लाचार हुई है कांग्रेस उसकी झलक एक कार्यक्रम में देखने को मिला। अपने साथियों को आइना दिखा रहे अशोक चौधरी और बेबस  दिखी कांग्रेस।देश की सबसे पुरानी पार्टी के बिहार प्रदेश की विशेष बैठक बुलाई गयी।मगर यहाँ नोटबन्दी छोड़ प्रदेश अध्यक्ष आंतरिक कलह से बेचैन दिखे।
इन्हें इस बात का एहसास है की अगर बिहार में अचानक इनकी ताक़त बढ़ी है तो ये इनकी ताक़त नही बल्कि नीतीश कुमार और लालू यादव के गठबन्धन के कारण बने सामाजिक समीकरण का इन्हें फायदा मिला है और बिना इनके वापस इनकी स्थिति पुनः मूषक भवः वाली होगी।
मिडिया की मौजूदगी में ये बातें कर रहे कांग्रेस के नेताओ को जब आया ध्यान तो केमेरा बन्द कराये गए और बाद में प्रदेश अध्यक्ष सफाई देते दिखे।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के सहारे सत्ता की सीधी चढ़ने की कोशिश में जुटी कांग्रेस ने बिहार में भी यही फार्मूला लगाया था मगर पार्टी की ताक़त का एहसास पार्टी के नेताओं को खूब है।

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