ब्रम्हेश्वर मुखिया : Myth and Reality

बिहार के भोजपुर ज़िला के छोटे से कस्बे[ खोपीरा ]में 23 मार्च १९४७ को जन्मे स्व ० रामबालक सिंह [मुखिया ] के बड़े पुत्र ऋषि कुल भूषण ब्रम्हेश्वर नाथ सिंह उर्फ़ ब्रम्हेश्वर मुखिया जी का जन्म हुआ था।वह बचपन से ही मेघावी और प्रतिभा के धनी थे वे जिस कार्य को करने की ठान लेते उसे वह पूरा करके ही छोड़ते । प्रारम्भिक शिक्षा के बाद हाई स्कूल की पढ़ाई पटना के सर जी० डी० पाटलिपुत्र से हुई और इंटर करने के लिये आरा के जैन कालेज आ गये । इंटर प्रथम श्रेणी से पास करने के उपरांत बी एस सी में ही पढ़ाई के दौरान सामाजसेवा की भावना से इतने लोकप्रिय हुए की स्नातक की पढाई करते -करते २४ वर्ष की आयु में लोगों ने इन्हें निर्विरोध मुखिया बना दिया गया ।तब से लेकर उन्होंने अपने आप को गाँव और ग्रामीणों के बेहतर जीवन को अपने जीवन का मिशन बना लिया।१९९० का वह दौर भी आया जब पूरा मध्य बिहार लाल सलाम और उनके खुनी मंसूबों से अटा पटा पड़ा हुआ था वामपंथ अपने उद्देश्य से भटक कर पूरे देश में ज़ुल्म और अन्याय का दुसरा घिनौना रूप ले चुका था।वर्ग संघर्ष के नाम पर नीरीह किसानों को सरेआम मौत ते घाट उतार दिया जाता था बेटियों की अस्मत और किसानों की ज़मीन लुट ली जाती थी।सरकार और प्रशासन नाम की कोई अवधारणा राज्य में नहीं रह गयी थी।ज़मीनें विरान और किसानों के खुन से लाल हो चुकी थी मध्य बिहार दुसरा नक्सलवाडी बन गया था ।एक दिन वह खेत पर काम कर रहे थे उसी समय नक्सली खेत पर आ धमके और ज़बरदस्ती नाकेबंदी का ऐलान कर दिया । अब पानी सर के उपर से गुज़र रहा था जो स्वाभिमानी ब्रह्मेशवर मुखिया जी को खल गया और उस दिन ही उन्होंने निश्चय कर लिया कि जब तक पूरे बिहार को नक्सलमुक्त नहीं कर दूँगा तब तक चैन की साँस नहीं लूँगा । उस दिन से नक्सलियों का प्रतिकार करने के लिये किसानों को गोलबंद करना प्रारंभ कर दिया। देखते ही देखते पूरे मध्य बिहार के किसानों को अपने हक़ और स्वाभिमान के लिये लड़ने को एकजुट कर दिया कभी देश में आतकंवादी या उग्रवादी घटनाएँ होती है तो हर लोगों की जुबान पर एक ही शब्द होता है की अगर ब्रम्हेश्वर मुखिया जी कि सरकार ने सेवा ली होती तो इस देश में आतंकवादी या उग्रवादी घटनाएँ कब की समाप्त हो गई होती .यानि जो काम सरकार नहीं कर सकी उस काम को ये चंद दिनों में ही कर दिखलाये थे यानि बिहार से उग्रवादियों का सफाया ..ऐसे मृदुभाषी स्वभाव के धनी मुखिया जी की सभी जातियों में गहरी पैठ थी सभी लोग इनका बहुत आदर किया करते थे ।

सन ८० के बाद आई ० पी० एफ० [ बर्तमान भाकपा माले ]का जन्म हुआ .आज जिस तरह पाकिस्तान में कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसे भारत के खिलाफ नफरत का बिज बोया जाता है .उसी तरह आई० पी० एफ० का जन्म ही जन्म ही सवर्णों के खिलाफ हुआ. ये लोग खासकर मध्यमवर्गीय किसानो [ जिसमे सवर्णों की संख्या ९० %थी ] को अपना निशाना बनाना लगे .उनकी बंदूके छीन लेते थे .और उनसे ५०००० -१००००० रुपया रंगदारी मांगते थे .जिनके पास बन्दुक और पैसे नहीं थे यानि वो लेवी देने में असमर्थ थे तो उनको ये लोग अपनी जन अदालत लगाकर पिटाई करते थे एवं इनके खेतों पर आर्थिक नाकेबंदी लगा दी जाती थी .धीरे दिये पुरे शाहाबाद और मगध में उग्रवादियों की सरकार स्थापित हो गई .८५ % स्वर्ण किसानो पर आर्थिक नाकेबंदी लगा दी गई .किशानों की बहु बेटियों की शादी की तो दूर उनकी इज़्ज़त भी सुरक्षित नही रही।बहुतों ने तो आत्महत्या कर लिया ।आई० पी० एफo ने अपना नाम बदलकर भाकपा माले कर लिया और भिन्न -भिन्न जगहों पर एम् ० सी o सी o ,संग्राम समिति ,पीपुल्स वार जैसे खूंखार संगठन अपने अपने क्षेत्रो में किसानो पर अत्याचार करने लगे .किसानों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई । नक्सलियों ने किसानों को तंगोतवाह कर दिया .भोजपुर के किसानों ने मिलकर लोकप्रिय शिक्षा विद एवं मुखिया ब्रम्हेश्वर सिंह को अपना नेता चुन लिया फिर क्या था नक्सलियों से मुक्ति के लिये मुखिया जी के नेतृत्व में युवाओं की टीम ने खेती का कार्य प्रारम्भ किया और नक्सलियों को जवाब देना शुरू किया। उग्रवादी इसका विरोध करने लगे रोकने लगे और पूरे बिहार में सैकड़ों किसानो की निर्मम हत्या करना शुरू किया फिर क्या था युवाओं की टीम ने जबाब देना शुरू कर दिया । जिसके परिणामस्वरूप दोनों ओर से बंदूके गरजने लगी । बिहार में कोलाहल सा मच गया ।

धीरे धीरे धीरे ये आग .पटना ,गया सम्पूर्ण मगध ,शाहाबाद से लेकर पुरे बिहार तक फ़ैल गई ।सभी जगह किसान और नक्सली आमने सामने हो गए । भीषण रक्तपात हुआ उस समय तत्कालीन सरकार भी उग्रवादियों के पक्ष में खड़ी हो गई .लेकिन बाढ़ के पानी को कोई कैसे रोक सकता है ……मुखिया को माताएँ अपना पुत्र ,बहन अपना भाई और पत्नी अपने पति को इस पुनीत कार्य में भेजने लगी .बहादुरों की एक फ़ौज जमा हो गई .नाक्स्सलियों के ठिकानो पर आक्रमण होने लगे .तभी मुखिया ने एक प्रेस बिज्ञप्ति जारी कर कहा की हमारी लड़ाई किसी जाती एवं संप्रदाय से नहीं है .हमारी लड़ाई नक्सलियों से है और तुम लोग महिलाओं एवं बच्चों को ढाल बना रहे हो जिससे उन मासूमों की जान जा रही है जो कहीं से भी उचित नहीं है .ऐसा करो कि तुम सभी नक्सली एक हो जाओ और बिहार या झारखण्ड में कहीं भी जगह का निर्धारण तुम करो हम वहां आते है और वही तुम्हारी और हमारी आखिरी लड़ाई होगी .अगर तुम जित गए तो तो हम अपना पूरा हथियार तुम्हारे कदमो में डालकर तुम्हारी पराधीनता स्वीकार कर लेंगे .अगर तुम हार गए तो इसका फैसला भी तुम्ही पर छोड़ते है की तुम्हारे साथ क्या सलूक किया जाय .

इनकी बातों पर पहल करते हुए संग्राम समिति पीपुल्स वार में विलय हो गई .और एम o सी o सी o के साथ मिलकर भाकपा माओवादी बनाया .फिर बिहार झारखण्ड एरिया कमिटी भाकपा माओवादी का बयान आया कि हम सेना प्रमुख की बातों पर विचार कर रहे है .लेकिन फिर मैंने अखवार में किसी तरह का इनका बयान आया चुकी ये कायर होते है .जिस तरह सिपाही विद्रोह के समय गौ माताओं को अंग्रेज आगे कर देते थे उसी तरह माओवादी भी मजदूरों को दहल बनाकर आगे कर देते थे .धीरे -धीरे मजदूर इस बात को समझ गए .और माओवादियों को पनाह देना बंद कर दिया तो माओवादियों की जमीन ही खिसक गई .और शांति का माहौल कायम होने लगा इनके नेत्रितत्व में किसानों के लाखों एकड़ ज़मीन नक्सलियों से मुक्त करा कर उनको भयमुक्त जीवन के साथ उनके सम्मान तथा मर्यादा की रक्षा की ।उसी दौर में मुखिया जी को गिरफ्तार कर पुलिस नें जेल में बंद कर दिया और उनपर बहुत से फर्जी मुक़दमे ठोक दिए गए लेकिन फर्जी आखिर फर्जी ही होते हैं ।इन्हें १६ मुक़दमे में माo उच्च न्यायलय ने वरी कर दिया शेष १० मामलों में वे जेल से बाहर आए ।मजदूर इस बात को समझ चुके थे की वास्तव में मुखिया जी ही हमलोगों के सच्चे हितैसी है । मुखिया जी जब जेल से बाहर आये तो किसानों और मज़दूरों के बेहतर जीवन के लिये अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन जो पहले से बना था उसे पुनर्जीवित कर फिर से मजदूर किसान एकता पर बल देने लगे जो सरकार और आततायियों के गले नहीं उतरी और और १ जून १९१२ को इनवकी गोली मारकर हत्या कर दी गयी।लेकिन तब तक वो किंवदंती बन चुके थे।..मरने के बाद स्वतः स्फूर्त जो लाखों की भीड़ जमा हुई जिसे देखकर ये समझते देर नहीं लगी की ये वास्तव में सबके मुखिया थे । उनका समस्त जीवन अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने में बीता और जाते जाते पूरे राष्ट्र को सिख देते गये कि यदि अदम्य साहस और इच्छाशक्ति हो तो संगठन की ताक़त और लोगों के सहयोग से किसी भी लड़ाई को जीता जा सकता है। आज भी अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन उनके सीख को आदर्श मानते हुये किसानों के हक़ की लड़ाई लड़ रहा है। जिस दिन किसान एवं उनके आश्रितों के चेहरे पर मुस्कान ले आये ये उनके लिये हमारी सच्ची श्रध्दांजली होगी।…………………..

अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन

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