सरकार से संघर्ष
सीबीआई के अधिकारी जिस तरीके से अपने गोपनीय जवाब और गतिविधियों को प्रेस को दे रहे हैं या लीक कर रहे हैं उस बात से स्पष्ट है कहीं ना कहीं उनका नेक्सस सरकार के विरोधी लोगों के साथ है और सरकार को बदनाम करने के षड्यंत्र में ये शामिल है । सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी और फटकार से अब इस बात में कहीं कोई शक नहीं है कि आलोक वर्मा और मनीष सिन्हा जैसे सीबीआई अधिकारी विपक्षियों के षडयंत्र के इंस्ट्रूमेंट बन चुके हैं। छुट्टी पर भेजे गए सीबीआइ निदेशक के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग की गोपनीय जांच रपट लीक हो जाने पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी स्वाभाविक है। उसने यह रपट सीलबंद लिफाफे में इसीलिए मांगी थी ताकि सीबीआइ की और छीछालेदर न हो। लेकिन आलोक वर्मा और मनीष सिन्हा के लोगों ने उसे मीडिया में लीक कर दिया।क्या गारंटी है कि अब राफेल की जानकारी भी लीक ना हो जाये जो राष्ट्रीय हित में काफी संवेदनशील है।
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि किसी की दिलचस्पी इसमें है कि सीबीआइ की साख पर कीचड़ उछलता रहे और उसके छींटे सरकार पर भी पड़ते रहें। इसका संकेत इससे भी मिलता है कि दो दिन पहले सीबीआइ के डीआइजी स्तर के एक अधिकारी मनीष सिंहा ने अपनी याचिका में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और एक केंद्रीय मंत्री पर जो तमाम सनसनीखेज आरोप लगाए उनका विवरण मीडिया को भी बांट दिया। आरोप के पक्ष में कोई सबूत भी नही है-केवल आपसी बतकही है।ये भी बड़ा अजीब बात है कि उसका तबादला 24 अक्टूबर होता है और उसे 19 नवंबर को यह याद आता है कि उसके साथ अन्याय हो गया है।इससे स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार दिल्ली की दलाल संस्कृति पर लगाम लगाने में पूरी तरह कामयाब नहीं रही। यह सामान्य बात नहीं कि एक तरह से उसके अपने ही अधिकारी उसे असहज करने में लगे हुए हैैं।ये सब कीसके इशारे पर हो रहा है इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।बाजपेयी जी के समय भी व्यवस्था के दीमकों ने यही नौटंकी किया था।व्यवस्था में कांग्रेस की पैठ कितनी गहरी है और यह किस प्रकार सड़ चुकी है यह अब आसानी से समझा जा सकता है।