बिहार की शिक्षा व्यवस्था घोर निराशाजनक

बिहार में इंटर के परीक्षाफल आ गए और लाखों को रुला गए |इस बार के परिणामो को देखकर १९९६ की याद आ गई जब बोर्ड परीक्षा के परिणाम आने के बाद दायर याचिका के बाद पटना हाई कोर्ट ने उसका संज्ञान लेते हुए अपनी देख -रेख में पुनः परीक्षा करवाई थी और परिणाम रहा था महज १०.५८ फीसद |अन्य सभी अनुतीर्ण घोषित हुए थे |इस बार भी कुछ -कुछ वैसा ही हुआ है और सफलता का प्रतिशत बेहद निराशाजनक है |फर्क सिर्फ इतना है कि ,इस बार बिहार विद्यालय परीक्षा समिती ने कदाचारमुक्त परीक्षा का संकल्प भी लिया था और उसका सख्ती से अनुपालन भी किया |साइंस में ७० फीसद छात्र फेल हो गए हैं तो आर्ट्स में ६३ फीसद |फेल होने के मामले में सबसे कम रहे कामर्स के छात्र |कामर्स में इस बार सिर्फ २६ प्रतिशत फेल हुए हैं |यानी इस विषय के सफल छात्रों का प्रतिशत है करीब ७४ %|

ज़ाहिर है किसी भी कोने से इस परिणाम को उत्साहवर्धक नहीं माना जा सकता | बिहार की शिक्षा प्रणाली और खास कर परीक्षा पद्धति हमेशा ही किसी न किसी कारण से समाचार बन रही है |गत वर्ष जबरदस्त घोटाले और जरूरत से ज्यादा छात्रों के पास होने के कारण तो इस वर्ष कदाचारमुक्त परीक्षा संकल्प के बाद आये बेहद कम छात्रों के उत्तीर्ण होने के कारण |गत वर्ष रूबी के रूप में हमने एक ऐसी छत्रा को देखा जिसे बिना इम्तिहान दिए ही तिकड़म के बल पर टॉप करा दिया गया था |इसके अलावा सफल छत्रों का प्रतिशत इतना था की उस पर यकीन करना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था |इसके बाद बच्चा राय , लाल्केश्वर ,परमेश्वर जैसे दर्जनों चेहरे सामने आये जिन्होंने बिहार की सिक्षा व्यवस्था का चेहरा बिगाड़ दिया था |इससे पूरे बिहार की छवि पर दाग लग गया था | उसके बाद बिहार सरकार ने श्री आनंद किशोर को बिहार विद्यालय परीक्षा समिति का अध्यक्ष बनाकर उन्हें खुली छूट दी |खुली छूट इस बात की ,कि वो सम्पूर्ण परीक्षा प्रणाली को एक ईमानदार और नर्र शक्ल दें |ऐसा ही हुआ भी | उन्होंने अपनी एक विश्वस्त टीम बना कर काम करना शुरू कर दिया |पहले उन सैकड़ों स्कूलों और इंटर कालेजों की मान्यता रद्द और निलंबित की जो छात्रों के भविष्य से खेल रहे थे और सामूहिक नक़ल का केंद्र बने हुए थे |महीनो, हर स्तर पर राज्य की शिक्षा प्रणाली से खिलवाड़ करने वालों का पता लगाने और उन्हें दण्डित करने के बाद बरी आयी परीक्षा की |इस बार हर स्तर पर कदाचार को रोकने की पूरी कोशिश की गयी और उसका परिणाम सामने है | इन परिणामो से एक बात तो साफ़ हो गयी है कि ,इससे पहले इस परीक्षा में अधिकांश छात्र पास होते नहीं थे बल्कि पास करवाए जाते थे | नक़ल और जुगाड़ का बोलबाला था ,जो इस बार नहीं चल सका |अगर ये मान भी लिया जाए कि कुछ छात्रों को उम्मीद और योग्यता के अनुसार नंबर नहीं मिले तो भी इतना तो तय है कि कुल मिलकर तस्वीर बेहद निराशाजनक है |राज्य के शिक्षा मंत्री ने एक महीने के बाद कम्पार्ट मेंटल परीक्षा की बात कही है |हो सकता है उसमे कुछ और छात्र पास हो जाएँ या फिर राज्य की ” प्रतिष्ठा ” को बचाए रखने के लिए कुछ को पास कर दिया जाए |कुछ भी कर लें ,इतना तो तय और साफ़ हो चुका है कि नक़ल पर नकेल कसते ही हमारे राज्य के अधिकांश छत्रों की क्षमता सबके सामने आ गयी है |अगर ये इम्तिहान राज्य के बाहर होते तो शायद कुछ लोग ,”बिहारी छात्रों के साथ भेद -भाव ” की बात उठाते ,लेकिन यहाँ तो उसकी गुंजाइश भी नहीं बचती |इतने ख़राब  रिजल्ट ने न सिर्फ राज्य के छात्रों बल्कि शिक्षकों और शिक्षा पद्धति  पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं | आने वाले समय में उन सभी दागों को धोना ही होगा | यह भी स्पष्ट हो चुका है कि ,मेहनत  और लगन से पढने वाले अवश्य सफल होंगे | इस बार हमें दूसरे राज्यों का उदाहरण देकर अपनी कमजोरी छुपाने की पारंपरिक गलती नहीं दोहरानी चाहिए | शायद ऐसी ही व्यवस्था बिहार की शिक्षा पद्धति और उसके स्तर को वापस पटरी पर ला सके |

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