भारतिय प्रशासनिक व्यवस्था देश के लिये विनाशकारी
भारतीय परीक्षा व शिक्षा व्यवस्था को एक जोरदार तमाचा :-
1984 में ‘कम्पटीशन सक्सेस’ नाम की पत्रिका ने IAS टॉपर के नोट्स छपा दिए जो पहले से MBBS भी था | दिल्ली में दरियागंज की फुटपाथ मार्किट में सस्ते में मिल गया | मैंने यह सोचकर खरीदा कि देखूँ किस तरह की मानसिकता और ज्ञान वालों को IAS के परीक्षक इस देश के लिए बेहतर समझते हैं | एक उदाहरण प्रस्तुत है |
प्रश्न था गान्धी जी के ब्रह्मचर्य सम्बन्धी विचार पर टिपण्णी लिखें |
किशोरियों के साथ गांधी जी ‘ब्रह्मचर्य के प्रयोग’ किस तरह करते थे, यह लिखता तो बेचारा फेल कर जाता | किन्तु उसने जो लिखा वह समस्त भारतीय दर्शन और सांस्कृतिक परम्परा पर भयंकर आघात था — उसने लिखा कि ब्रह्मचर्य एक अव्यवहारिक, अनावश्यक और गलत अवधारणा है जिसका पालन वास्तविक जीवन में करना सम्भव नहीं है तथा समाज के लिए हानिकारक भी है, और ऐसी काल्पनिक बातों को बढ़ावा देना गान्धी जी की गलती थी !!
उस परीक्षार्थी का दोष नहीं था, उसने तो वही लिखा जो लिखने पर उसे अधिक अंक मिलते | IAS की परीक्षाओं में वही लोग अच्छे अंक ला पाते हैं जो कोचिंग संस्थाओं और मित्रों द्वारा पहले से पता लगा लेते हैं कि किस तरह के उत्तर लिखने पर अच्छे अंक मिलते हैं और फिर उसी किस्म की तैयारी करते हैं | अंक देने वाले परीक्षक आजीवन जेल में रहने लायक हैं, किन्तु देश के प्रशासक नियुक्त करते हैं | तभी से IAS के बारे में मेरी धारणा बदल गयी और इस प्रणाली को मैं भारत के लिए घातक मानने लगा |
महाभारत में श्रीकृष्ण ने विवाहित अर्जुन को ब्रह्मचारी कहा और अविवाहित अश्वत्थामा द्वारा ब्रह्मास्त्र वापस लेने में असफलता का कारण उसका ब्रह्मचारी नहीं होना बताया | ब्रह्मचर्य चारों आश्रमों के लिए अनिवार्य माना गया | अविवाहित रहकर अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन अपवाद है, सभी वैसे ही हो जाएंगे तो सृष्टि समाप्त हो जायेगी, अतः वह मुट्ठी भर लोगों के लिए है, समाज के लिए नहीं | समाज के लिए अर्जुन वाला ब्रह्मचर्य है जिन्होंने कई विवाह किये किन्तु वासना से दूर रहे, उर्वशी को भी ठुकरा दिया | फेसबुक पर कई मूर्ख लिखते हैं कि एक पति या एक पत्नी के प्रति निष्ठावान रहना ब्रह्मचर्य है — यह मनगढ़न्त बकवास है जिसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है | केवल सन्तानोत्पत्ति हेतु पति-पत्नी का सम्बन्ध हो और वह भी गर्भाधान संस्कार के धार्मिक विधि के अनुरूप तभी ब्रह्मचर्य माना जा सकता है | पति-पत्नी के बीच भी वासना हो तो ब्रह्मचर्य खण्डित हो जाता है | ऋग्वेद में कथा है कि उर्वशी ने पुरुरवा के साथ रहकर सन्तान दिए जिसके फलस्वरूप द्वापर युग के चन्द्रवंश का आरम्भ हुआ, किन्तु तीन वर्ष पूर्ण होने पर स्वर्ग लौट गयी, पुरुरवा रोता रह गया कि उसके हृदय को भेड़िये खा लें, किन्तु उर्वशी ने उत्तर दिया — “दुरापना वात इवाहस्मि” — मैं वायु की तरह दुष्प्राप्य हूँ ! पुरुरवा के उर को वश में भले ही उर्वशी कर ले, नारी को वश में करना हवा को मुट्ठी में बन्द करने के तुल्य है ! जानते हैं क्यों ? हर नारी के दुर्गम अचेतन मन के नीचे दुर्गा छिपी रहती है जिस कारण कुमारियों को माँ कहकर भोज खिलाया जाता है | सन्तानोत्पत्ति यज्ञ है | वैदिक विवाह मन्त्र के अनुसार वधू का विवाह पहले तीन देवताओं के साथ होता है, तभी मनुष्य उसका पति बन सकता है | सन्तान देवता देते हैं — वैदिक विवाह के मन्त्र में “देवकामा” बनने का आशीर्वाद वधू को दिया जाता है | “पतिकामा” किसी भी वेद में नहीं मिलेगा |
IAS के परीक्षक तो मैकॉले के मानसपुत्र हैं, भारतीय संस्कृति को क्या समझेंगे !
यह एक उदाहरण मात्र है, पूरे सिस्टम में ही भांग घुला हुआ है | इतना अधिक घुला है कि सुधार सम्भव नहीं है, उखाड़कर फेंकना पडेगा | किन्तु समाज का कोई वर्ग इस बात को नहीं समझता | ऐसे समाज का क्षय सुनिश्चित है, तभी नवनिर्माण होगा |
वह काल आरम्भ हो चुका है |
ब्रह्मचर्य को गरियाने वाले कामी-वामी-कांगी भैंसासुरी भीमासुरी हुक्मरानों के कारण ही अश्लील और अधार्मिक संस्कृति देश में फैल रही है | सुधार की शक्ति जिन हाथों में है वे लफंगे हैं — क्योंकि ब्रह्मचर्य का विकल्प लफंगई है !! भारतीय (वैदिक, बौद्ध, जैन, — यहां बौद्ध का अर्थ भीमासुरवाद या दलाई-लामा-वाद न समझें) संस्कृति के सिवा संसार के किसी भी सम्प्रदाय ने ब्रह्मचर्य को मान्यता नहीं दी — पश्चिम के सेमेटिक सम्प्रदाय (यहूदी, ईसाई, इस्लाम) तो ब्रह्म के बदले अब्रह्म (Abraham) को ही अपना स्रोत मानते हैं और भारत पर भी उनका ही अघोषित आधिपत्य है | हिन्दू भी उनकी ही सोच को हिन्दुत्व समझने लगते हैं, शिक्षा और मीडिया यह करामात करती है |……………
गुरु विनय झा की कलम से