मर्ज़ बढ़ता गया ज्यूं -ज्यूं दवा की

कुछ मर्ज़ ऐसे होते हैं जिनका जितना इलाज होता है उतना ही वह बढ़ता जाता है |कश्मीर समस्या एक ऐसा ही नासूर है जिसका अब इलाज नामुमकिन सा दिखने लगा है और लगता है कि आपरेशन ही एक मात्र इलाज बचा है |आजादी (१९४७ )के बाद से ही यह समस्या देश को परेशान कर रही है |पहले वहां कबाइली आकर लोगों को आतंकित और परेशान करते थे |देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने बार -बार ध्यान दिलाने के बावजूद इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दिया |उस वक़्त यह समस्या छोटी सी फुंसी के रूप में थी |इस पर ध्यान न देने और इसका स्थाई हल न निकालने की तत्कालीन सरकार की इक्च्छा शक्ति ने इस समस्या को धीरे -धीरे इतना बढ़ा दिया कि छोटी सी फुंसी ने एक फोड़े का रूप लेना शुरू कर दिया |नेहरुजी के निधन के बाद एक के बाद एक प्रधानमंत्री (सभी कांग्रेसी ) आते गए लेकिन किसी ने भी इस पर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा |इंदिरा गांधी जैसी सशक्त और प्रचंड बहुमत वाली प्रधानमंत्री ने भी इस समस्या को सुलझाने की बजाय फलने -फूलने दिया |सीमा पर भारतीय सैनिको को उस वक़्त भी रोज़ अपनी जान पर खेलना और जान गंवाना दिनचर्या सी बन गई थी |इसके बाद राजीव गाँधी ,नरसिम्हा राव किसी ने भी इस गंभीरता को नहीं समझा |अटलजी के ज़माने में बात चीत के ज़रिये समस्या का हल निकालने की सार्थक पहल जरूर शुरू हुई लेकिन पाकिस्तान के हुक्मरानों को अपना वजूद समस्या को बरकरार रखने में ही ज्यादा नज़र आया और उन्होंने का|कारगिल युद्ध करके अटल सरकार की तमाम कोशिशों को लगभग नाकाम करते हुए बातचीत से समस्या का हल निकलने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया |इस बीच पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने घाटी के हालात और वहां के माहौल को ज़हरीला बना दिया |आतंक को पाकिस्तान ने इतना पाला पोषा कि अब उसकी आग भारत के साथ – साथ लगातार पाकिस्तान को भी झुलसा रही है |आये दिन सीमा पार से भारतीय चौकियों पर हमला अब आम बात हो गई है |मज़े की बात यह है कि पाकिस्तानी सरपरस्ती और मिलने वाली ट्रेनिंग के साथ – साथ कश्मीर में अलगाववादी ताकतें भी अब आये दिन मुसीबत का कारण बन रही हैं |आतंकवादियों के बचाव में अब कश्मीर में छात्रों की शक्ल में पत्थर बाजों के समूह उभर आये हैं जो भारतीय सुरक्षा बालों पर पत्थर बरसा कर आतंकवादियों को निकल भागने में मदद करते हैं और उनकी ढाल बन जाते हैं |सबसे ज्यादा चौंकाने और निराश करने वाली बात यह है कि अलगाववादी नेताओं के साथ अब हमारे देश की कुछ राजनीतिक पार्टियों के नेता भी पत्थर बाजों के लिए हमदर्दी रखने लगे हैं |इस कार्य में लिप्त युवाओं को वे “भटका हुआ युवा ” बता कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने में लगे हैं |कुछ पार्टी के नेता तो ऐसे भी हैं जो ये बयान देने से भी नहीं हिचकते कि ,”पाकिस्तान पर आतंकवाद का आरोप लगाने से पहले हमें पर्याप्त सबूत देना चाहिए |और पत्थर बरसाने वाले युवा अपराधी नहीं हैं ,बल्कि अपने ढंग से केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे है “|हांलाकि सुप्रीम कोर्ट ने पत्थर बाजों को देश द्रोह में लिप्त युवाओं का समूह बताकर उनसे सख्ती से निपटने का निर्देश दिया है |केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा (एन डी ए ) सरकार है जिससे कश्मीर के कुछ पाकिस्तान परस्त नेताओं के साथ -साथ कुछ राजनीतिक पार्टियों को नफरत है |मौजूदा केंद्र सरकार ऐसे लोगों को फूटी अंक नहीं सुहा रही है ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान को |लेकिन इन पार्टियों और इनके नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि नरेद्र मोदी को सरकार बनाने का मौका भारत की जनता ने अपना बेशकीमती वोट देकर दिया है |लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है |उसके फैसले का अपमान करने से पहले विपक्षी नेताओं को सौ बार सोचना चाहिए |वैसे भी जब बात हिंदुस्तान -पाकिस्तान की हो तो सभी को तिरंगे के नीचे ही आना होगा वरना उन्हें भी परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा |ऐसे लोगों को यह बात भी अच्छी तरह स्वीकारना और समझना होगा कि कश्मीर समस्या मोदी सरकार की देन नहीं है |पूरा देश इसका निदान चाहता है ,लेकिन पत्थर बाजों ,आतंकियों और पाकिस्तान के लिए हमदर्दी रख कर नहीं |या फिर घाटी में पाकिस्तानी झंडा फहराने वालों का साथ देकर नहीं |देशभक्ति और देशद्रोह में स्पष्ट फर्क होता है उसे हर किसी को समझना होगा |अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नाराजगी ज़ाहिर करने के तरीकों के नाम पर किसी को भी देशद्रोह की इज़ाज़त नहीं डी जानी चाहिए |किसी भी दलील और तक़रीर से आप देशद्रोह और देशभक्ति को एक ही नज़रिए से नहीं देख सकते |

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