एक और खिलाफ़त

रोहिंग्या एक क्रूर इस्लामिक आबादी जिसके दमन के म्यन्मार के प्रयास को पूरा विश्व एक साथ खासकर मुस्लिम राष्ट्रों ने जमकर भर्त्सना की और आये दिन मिडिया में प्रेस विज्ञप्ति जारी होती रही| म्यन्मार बिलकुल निर्भीक रहा और अपना मिशन जारी रखा है अबतक|ऐसी दृढ सोच भारत को भी खासकर कश्मीर केरल और बंगाल कि समस्याओ को निपटने में दिखाना चाहिये| भारतीय राजनैतिक पार्टियों की भी वोट बैंक कि राजनीती के अनुसार भोपू बजती रही पर भारत कि भग्वा सरकार अपनी मौन समर्थन म्यन्मार को अबतक देती रही, साथ ही शर्णार्थियो के प्रवेश को भी लगाम लगाये रखा| भारत से यही अपेक्षित भी था क्योकि वर्तमान सरकार को रचने वाली पार्टी कि मातरि सन्गठन का जन्म ही ऐसे ही एक विश्व व्यापी मुस्लिम आन्दोलन (खिलाफ़त) कि विफलता के बाद भारत के  हिन्दुओ के साथ  हुए अमानवीय व्यवहारों के बाद हुआ था| इसलिए भारतीय सरकार कि ये मौन स्वीकृति और सहमती स्वाभाविक थी| पर एक विषय जो पुनह ध्यान खिचता है वह है म्यन्मार के मुस्लिमो के लिए उभरा भारत और विश्व के मुस्लिमो का दर्द|

क्या हम एकबार पुनह एक ऐसी क्रूर मुस्लिम आबादी से घिरते जा रहे है जो पुनह अपनी हिंसा अराजकता और अमानवीय हरकतों से भारत का एक और हिस्सा लेकर अलग होनेवाला है; जैसा कि पीछे इतिहास में कई बार हुआ है आगे भी होनेवाला है| क्या ये किसी और पाकिस्तान कि सम्भावनाओ पर बल दे रही है? ये तथ्य विचारणीय है? पर इसबार विचार का पक्ष राजनैतिक लोभियों के हाथो में छोड़ना क्या उचित होगा? क्या कोई नेहरु फिर भारत विभाजन के ताक में है?

कश्मीर जो कि पूर्णत सैन्य बल के बदौलत हमसे जुडा है; ऐसे में एक और खिलाफ़त जिसमे मुस्लिमो का होता राष्ट्रव्यापी एवम आसपास के राष्ट्रों में होता ध्रुविक्ररण कही किसी और संकट का आह्वन तो नही करने वाली| चाहे परिणाम जो भी हो पर हिन्दूओ को इतिहास नही भूलनी चाहिय| खुद के एकता, शास्क्तिकरण तथा उदारवादी व्यवहार पर विचार करना होगा| ताकि इस एक और खिलाफ़त के किसी भी तरह के परिणाम से निपटने में हम भविष्य में सक्षम रहे|

सत्य सनातन के अमरत्व के लिए प्रयासरत मै – एक आर्यवंशी|

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