मरीज मरें तो मरें ,लालूजी स्वस्थ रहें
बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल किसी से छुपा हुआ नहीं है | मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव तक रोजाना मीडिया में बयान देते हैं कि राज्य की स्वास्थ्य सेवा और अस्पतालों की हालत में अभूतपूर्व सुधार हुआ है |इनके बयानों को सुनकर या अख़बारों में पढ़ कर कोई भी यही समझेगा कि जब से महागठबंधन की सरकार बनी है बिहार में बहार ही बहार है |लेकिन उन मरीजों से पूछिए जो इलाज के लिए पी एम् सी एच , एन एम् सी एच , इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान सन्स्थान या फिर ऐसे ही किसी अस्पताल में इलाज करवाने आते हैं और वहां के किसी बरामदे में दम तोड़ देते हैं | राजधानी पटना और राज्य के विभिन्न जिलों से हजारों की संख्या में मरीज रोजाना इन नामी -गिरामी अस्पतालों में इलाज की आस में भर्ती होने और स्वस्थ होने की आस में आते हैं |लेकिन इन अस्पतालों में आने के बाद उन्हें इनकी और अपने ‘प्रिय ‘ मुख्य मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के बयानों की हकीकत का एहसास होता है |वहां न तो उन्हें डाक्टर मिलते हैं ,न दवाइयां , न नर्स और न ही कमरा या खटिया |सच कहें तो इन अस्पतालों में आकर उनकी और उनके परिजनों की खटिया खड़ी हो जाती है |जिन अखबारों में राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के बड़े -बड़े दावे और आश्वासन छपते हैं ,उन्ही में मरीजों की दुर्दशा और इन बड़े अस्पतालों की बदहाली का समाचार भी रोजाना छपता है |लोग इन अस्पतालों में बेहतर इलाज़ , बेहतर डाक्टर , खाना , दवा , और स्वस्थ होकर लौटने की उम्मीद लगाकर जाते हैं और लौटते हैं चार कन्धों पर , या फिर जिन्दा लाश की शक्ल में | इसकी वजह ये है कि यहाँ न तो उन्हें कोई पूछने वाला होता है और न देखने वाला |साफ़ बिस्तर , बढिया खाना , अच्छी दवा , बेहतर सेवा और देश के ‘सर्वश्रेष्ठ ‘ डाक्टरों से इलाज का उनका सपना इन अस्पतालों में आकर ऐसा दम तोड़ता है कि वो दोबारा यहाँ आने की हिम्मत नहीं जुटा पाते और मजबूरन उन प्राइवेट क्लीनिकों की शरण में जाते हैं जहां इन्ही अस्पतालों के नामचीन डाक्टर उनका इलाज करते हैं |लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में एक आम आदमी या तो बुरी तरह क़र्ज़ में डूब जाता है ,या फिर उसका खेत – खलिहान बिक जाता है |इन तमाम अस्पतालों की दयनीय और वहां के स्टाफ के अमानवीय व्यवहार की कहानी आप को रोजाना अखबारों में पढने को मिल जायेगी |
ऐसा नहीं कि इन अस्पतालों में कुशल डाक्टर नहीं हैं ,अच्छे उपकरण नहीं हैं , अच्छी दवाइयां नहीं हैं , या फिर सेवा भाव से भरी नर्सें नहीं हैं |सब हैं ,लेकिन वो हैं लालूजी जैसे नेताओं के लिए | उन्हें अस्पताल नहीं आना पड़ता बल्कि अस्पताल उठ कर उनके घर पंहुच जाता है इलाज के लिए |एक तो वो प्रदेश के ‘ हेल्थ मिनिस्टर ‘ के पिता हैं और दूसरे उस पार्टी के सुप्रीमो जिसके दम पर राज्य सरकार टिकी है |आपको यकीन नहीं हो रहा तो यह उदहारण पढ़ लीजिये …..विगत दिनों लालूजी अस्वस्थ हो गए तो आठ दिनों तक इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान के तीन वरिष्ठ डाक्टरों और दो नर्सों की ड्यूटी उनके घर पर लगा दी गई |इन सभी का यही काम था कि चौबीसों घंटे लालूजी की देखभाल करते रहें |मजे की बात यह है कि इस अस्पताल का प्रबंधन नौ दिनों तक अपने डाक्टरों और नर्सों को लालूजी के निवास पर भेजने को सर्वथा उचित ठहरा रहा है |इसमें उसे न तो कोई गल्ती नज़र आ रही है और न ही कुछ गलत |दिन -रात केंद्र सरकार से नैतिकता का तकाजा करने वाले हमारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी इसमें कुछ गलत नज़र नहीं आया |सही भी है ,क्यूंकि इसमें गलती निकलने की गल्ती कर वो अपनी सरकार पर कोई संकट नहीं लाना चाहेंगे |हम तो अपने मुख्यमंत्री से इतनी ही अपील करेंगे कि अपनी सरकार की सेहत के साथ -साथ प्रदेश के अस्पतालों और उनमे इलाज के अभाव में रोजाना मरने वाले सैंकड़ों – हजारों मरीजों पर भी एक नज़र जरूर डालें क्यूंकि उनलोगों को अपने मुख्यमंत्री की ‘ईमानदारी ‘ पर अभी भी यकीन है |