कांग्रेस की आखिरी तीर

कांग्रेस ने अपने तरकस का आखरी तीर आखिर छोड़ ही दिया  । कहा जा रहा है कांग्रेस के लिए यह ब्रह्मास्त्र है ,जिसके बारे में माना जा रहा है की अपना लक्ष्य भेद के ही वापस लौटेगी।
वैसे भारत के लोग वंश के प्रति एक विशेष प्रकार का आकर्षण महसूस करते हैं। ऐसा गांधी परिवार के साथ भी है। यद्यपि पूरे विश्व में वंश वंश वादी राजनीति चलती है चाहे अमेरिका हो या फिर इंग्लैंड हो या फिर श्रीलंका। वैसे एशियाई देशों में यह ज्यादा देखने को मिलता है।
एक वर्ग ऐसा भी मान रहा है कि प्रियंका गांधी का विधिवत कांग्रेस की राजनीति में प्रवेश करना कहीं ना कहीं राहुल गांधी के आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है । ऐसा तब हुआ जबकि उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने तीन राज्यों में अपनी सरकार बनाई है ।
 जैसा कि आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश राजस्थान में बेहतर किस्मत के भरोसे कांग्रेस हारते हारते जीती यानी इन दोनों राज्यों में कांग्रेस का जीतना महज एक संयोग है जैसा कि हम देख चुके हैं  2 राज्यों में वह  बुरी तरह हारी। यानी कांग्रेस नेतृत्व मान चुकी है कि केवल राहुल के बूते या फिर महागठबंधन के बूते मोदी को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
यह ठीक है प्रियंका गांधी बेहद खूबसूरत और ग्लैमर से भरी हुई है । एक स्वाभाविक आकर्षण वह पैदा करती हैं जैसा कि शुरुआती दौर में इंदिरा गांधी करती थी। लेकिन हमें यह देखना होगा कि पिछले चुनाव में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के जीत का अंतर घटा है वह भी तब जब केवल उन्हीं दोनों क्षेत्रों में प्रियंका गांधी केंद्रित थी और धुआंधार प्रचार करती रही।
कहा जाता है बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की। अब यह मुट्ठी  खाक की है या लाख की यह देखने की बात है ।इतना जरूर लगता है कि खानदान के इर्दगिर्द एक लोकतांत्रिक राजनीति का सिमटना बेहद खतरनाक संकेत देता है।
यह केवल गांधी परिवार के मामले में ही लागू नही होता है बल्कि क्षेत्रीय क्षत्रपो के मामले में भी लागू होता है। वो चाहे लालू का कुनबा हो , मुलायम का कुनबा हो , मायावती का कुनबा हो,  फारुख अब्दुल्ला का कुनबा या फिर देवगोंडा का कुनबा हो या फिर नए उभरते नेताओं के कुनबे की बात हो ।यह लोकतंत्र के वास्तविक स्वरूप को बर्बाद ही कर रहा है।
सारे लोकतांत्रिक पार्टियों को देखने के बाद यह मानने में कहीं कोई गुरेज नहीं कर सकता है कि लोकतंत्र का असली स्वरूप भारतीय जनता पार्टी के अंदर ही है जहां वंश के नाम पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तय  नहीं होता है ।
यह कांग्रेस के लिए भी शर्म की बात है कि पिछले 70 सालों में कांग्रेस अपने पार्टी के अंदर ऐसी व्यवस्था उत्पन्न नहीं कर पाई जिससे वह एकमात्र वंश का परजीवी बनने के आरोप से बाहर आ जाए। इससे स्पष्ट होता है कांग्रेस एक रीढ़ विहीन पार्टी है जो महात्मा गांधी के विरासत को फर्जी तरीके से ढोने का ढोंग करती है।
2019 की लड़ाई वास्तविक लोकतंत्र और वंश वादी छद्म लोकतंत्र के बीच है । देश की जनता को तय करना है कि उसे आम जनता का प्रतिनिधि प्रधानमंत्री चाहिए की एक ऐसे वंश का व्यक्ति चाहिए जिसे केवल अपने परिवार के नाम पर विरासत प्राप्त हो गया है।

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