टुकड़ा टुकड़ा इश्क:अदाएं

हम आज ऑटो में बैठकर एयरपोर्ट के रेस्टुरेंट में जा रहे थे।
बारिस अभी अभी खत्म हुई थी।हवा की ठंडक मीठी मीठी सिहरन पैदा कर रही थी।पीछे की सीट पर हम दोनों बैठे थे पर एक दूरी बनाकर सकुचाये हुए से।हवा के झोंको से  बारिस से बचने के लिए टँगा ऑटो का पर्दा बार बार अंदर की ओर आ रहा था मानो हमे एक दूसरे के पास सरकने के लिए कह रहा हो । एक दो बार  परदा हटाने के चक्कर में हमारे सर आपस मे जुड़ गए।फिर हमने एक दूसरे की तरफ मुंह किया।अचानक दुनिया ठहर सी गई तभी अचानक बगल से एक सिटी बस तेजी से पों पों करती हुई निकली।
डीज़ल की गंध के कारण ही मैं बसों पर नही चढ़ती।
हाँ, मुझे भी ये पसंद नही है।
मुझे ट्रेन में खिड़की के पास बैठना अच्छा लगता है।
मैं कहना चाहता था-मुझे भी,पर पता नही मैं ये बोल न सका।
उसने मेरी तरफ कनखियों से देखा फिर पूछा-क्या तुम्हें ये अच्छा नही लगता?
मैं बस मुस्कुरा दिया।
तुम बोलते बहुत कम हो।
अगर मैं बहुत बोलूंगा तो तुम्हे सुनूंगा कैसे?
मैने बहुत बोलने की नही बस बोलने की बात कही।
इस बार मैं उसे बस देखता रहा।बातों की खाल निकालती बहुत सुंदर और आकर्षक लग रही थी वह।शायद इसको हीं अदा कहते हैं।कहीं मैंने पढ़ा था अदाएं हीं लड़कियों को खूबसूरत बनाती हैं।

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