हलाला को सही मानती है मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के संस्थापक मौलाना मिन्न तुल्लाह रहमानी ने अपनी किताब ‘ निकाह और तलाक ‘ में साफ़ -साफ़ लिखा है कि ,” तीन तलाक एक साथ देना शैतानी काम है “|वो आगे लिखते हैं कि,” फुकहा ( धर्म शास्त्री ) ने इसे पाप और सजा के लायक अपराध माना है |इससे बचना हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है “|ये बातें उन्होंने अपनी किताब के पृष्ठ संख्या सात पर लिखी हैं |किताब के आखिरी पन्ने और पैराग्राफ में वह साफ़ तौर पर समझाते हैं कि , ” मुसलमानों को चाहिए कि एक ही समय और एक ही बार में तीन तलाक देने से परहेज करें ,क्यूंकि यह गुनाह की बात है |हज़रात मोहम्मद के साथियों यानी सहाबा को यही तरीका पसंद था |इस तरीके को छोड़कर दूसरा तरीका अपनाना शरियत के खिलाफ होगा |इससे खुदा और उसका रसूल नाराज़ होगा और उसकी नाराजगी दुनिया और आखिरत ,दोनों में बदनामी का सबब बनेगी ‘ |
तीन तलाक के मसले पर छिड़ी बहस के बीच मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अभी हाल में अपने लखनऊ सम्मलेन में कुछ फैसले किये हैं |इसमें एक फैसला यह है कि ,तीन तलाक देने वाले का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा |उस सम्मलेन में कुछ आचार संहिता भी बनाई गई है |सबसे पहली बात तो यह कि ये सारी कसरत सुप्रीम कोर्ट का सामना करने और वहां अपना पक्ष मजबूत करने के इरादे से किया गया है |यह बोर्ड जनता द्वारा चुनी गई कोई संस्था नहीं है और न ही इसका गठन किसी कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ है अतः पहला सवाल सुप्रीम कोर्ट यही करेगा कि ,तीन तलाक पर सवाल खड़ा करने का उसे किसने अधिकार दिया ,या फिर यह बोर्ड किस हैसियत से ऐसा कर रहा है |दूसरी सबसे अहम् बात यह कि , कुरान में तीन तलाक पर सामजिक बहिष्कार जैसी किसी सजा की बात तो दूर ,उसका ज़िक्र तक नहीं है | हां ,धर्म परिवर्तन के बाद की सूरत में ऐसी सजा का उल्लेख है मेकिं वह भी कुछ शर्तों के साथ |यह भी गौर करने वाली बात है कि , मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से किसी ने भी सामजिक बहिष्कार को परिभाषित नहीं किया है |बोर्ड के पास इस सजा को लागू करने का न तो अधिकार है और न ही कोई तंत्र |यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस सजा की घोषणा का अधिकार किसे है |ज़ाहिर है ऐसी सूरत में कोर्ट में यह सवाल जरूर उठेगा कि इसका क्या औचित्य है और इसे लागू करने की क्या प्रक्रिया होगी |रही बात नई आचार संहिता कि ,तो कोर्ट में यह सवाल जरूर उठेगा कि कुरान के होते हुए नई आचारसंहिता की जरूरत क्यूं पड़ी |ऐसे में बोर्ड के पास शायद ही कोई जवाब होगा |कोर्ट में यह सवाल भी जरूर सामने आएगा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अब तक हलाला निकाह को अब तक क्यूं अपनी मंज़ूरी दे रखी है जब कि कुरान इसकी इज़ाज़त नहीं देता |बहु पत्नी प्रथा पर भी ढेरों सवाल उठेंगे जिसका जवाब देना कोर्ट के लिए कठिन होगा |बोर्ड के संथापक रहमानी साहब की किताब “निकाह और तलाक ” का ज़िक्र और हवाला कोर्ट में होगा ही ऐसे में बोर्ड के मौजूदा प्रतिनिधि या फिर उसके वकील कौन सी दलील पेश करेंगे |सप्रीम कोर्ट निश्चित रूप से यह सवाल करेगा कि ,जब कुरान और शरियत दोनों ही एक समय में तीन तलाक के खिलाफ है तो फिर बोर्ड की हिमायत का क्या औचित्य है |जरूर यह बात होगी कि ,क़ानून बनाकर इसे हमेशा के लिए समाप्त कर देने ने क्या खराबी है ,और यह भी कि बोर्ड इसे क्यूं बनाये रखना चाहता है | ऐसे में कोर्ट के सवालों का जवाब देना किसी के लिए भी लगभग नामुमकिन होगा |