एन डी टी वी प्रकरण मीडिया पर हमला नहीं

एन डी टी वी प्रकरण को कई लोग मीडिया पर हमला बता रहे हैं जो किसी भी कोण से उचित नहीं है |विपक्षी नेताओं को तो जैसे मीडिया से सहानुभूति जताने का एक मौका सा मिल गया है |पानी पी – पी कर मीडिया को कोसने वाले लालू प्रसाद यादव भी इस मामले में मुखर होकर केंद्र सरकार पर हमला कर रहे हैं और एन डी टी वी के मालिकों पर हो रहे सी बी आई के छापों को मीडिया पर हमले की संज्ञा दे रहे हैं |एन डी टी वी ने भी इसे मीडिया पर हमला बताया है | इस मीडिया संस्थान ने केंद्र सरकार पर मीडिया को कुचलने और उसकी आवाज़ दबाने का आरोप लगाया है |यह बात अपनी जगह सौ फीसद सही है कि लोकतंत्र के लिए यह ज़रूरी है कि मीडिया पूर्णतः स्वतंत्र हो और उसे सच लिखने ,सच बताने और सच दिखने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए | यहां प्रशन ये उठता है कि कोई भी मीडिया संस्थान या वहां का प्रबंधन यदि कर चोरी ,गलत ढंग से पैसा बनाने या अपनी आय को छुपाने का प्रयास करता है तो क्या इसे हम ” मीडिया की स्वतंत्रता ” का नाम देकर नज़रअंदाज़ कर सकते हैं या फिर उसे अपराधमुक्त कर सकते हैं |अगर यह पैमाना सही है तो फिर सहारा प्रमुख सुब्रत राय को भी हमें दोषमुक्त कर देना चाहिए क्यूंकि वो भी एक अखबार और टी वी चैनेल के मालिक हैं |हमें यह तो फर्क करना ही होगा कि कोई भी कदम समाचार छपने या दिखाने के कारण उठाया गया है या फिर किसी अन्य कारण से | तरुण तेजपाल प्रकरण में भी प्रशाशन और कानून ने अपना काम इसलिए नहीं किया कई उन्होंने किसी रहस्य पर से पर्दा उठाया था ,बल्कि इसलिए कि उन्होंने अपनी एक महिला सहकर्मी का शोषण किया था |हम किसी भी मामले में दो चीजों को मिलकर नहीं देख सकते |अगर कोई भी अखबार सच लिखता है और उसके संपादक या रिपोर्टर को उस वजह से प्रताड़ना या सजा झेलनी पड़ती है तो उसे बिना संकोच मीडिया पर हमला कहा जायेगा |इसके ठीक विपरीत अगर कोई रिपोर्टर या मीडियाकर्मी किसी आर्थिक या सामाजिक अपराध में लिप्त होने पर जेल भेजा जाता है तो उसे किसी भी कोण से मीडिया पर हमले की संज्ञा नहीं दी जा सकती ,नहीं दी जानी चाहिए |एन डी टी वी प्रकरण में भी प्रणय रॉय या राधिका रॉय की फर्जी कंपनियों की जांच -पड़ताल या फिर उनके संस्थानों पर छापे भी किसी कोने से पत्रकारिता या मीडिया पर हमले नहीं हैं |ये बात अलग है कि ,विपक्षी नेता इस वक़्त मीडिया के हमदर्द का मुखौटा ओढ़कर खड़े नज़र आ रहे हैं | इनमे अधिकांश वही हैं जो अपनी प्रशंशा न छपने पर सम्बंधित अखबारों या चैंनलों का विज्ञापन रोक देते हैं |ये वही नेता हैं जो कुछ पत्रकारों को अपने अनुसार लिखने के लिए कहते हैं और उसके लिए उन्हें ढेरों सुविधाएँ मुहैय्या  कराते हैं | शायद यही वजह है कि , इन नेताओं के इशारे पर लिखने और इनका मनचाहा समाचार दिखाने वाले पत्रकार करोडपति हो गए हैं और पांच तारा जीवन जी रहे हैं |आप सहज ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जिस देश में बहुसंख्य मीडियाकर्मी अपने वेतन पर गुज़ारा करते हैं वहीं कुछ मीडिया कर्मियों को करोडपति बनाने और भ्रष्ट करने का काम किसका हो सकता है |मीडिया पर हमला होने पर पूरे देश की मीडिया को एक साथ आकर उसका विरोध करना ही चाहिए ,लेकिन पहले यह तय होना जरूरी है कि वह हमला मीडिया और उसके मूल्यों पर है |

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