अब बारी समाज की है
सुप्रीम कोर्ट ने १६ दिसंबर २०१२ के सनसनीखेज सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड के चारों दोषियों की फांसी की सजा पर अपनी मुहर भी लगा दी है |दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरक़रार रखते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस अपराध ने देश में हर तरफ ‘सदमे की सुनामी ‘ ला दी थी |अपने ४२९ पेज के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है ,जिसमे बर्बरता के साथ पैरा मेडिकल छात्रा पर पैशाचिक हमला किया गया |दोषियों ने पीडिता की अस्मिता लूटने के इरादे से उसे सिर्फ मनोरंजन का साधन समझ इस जघन्य घटना को अंजाम दिया |इस फैसले से सारा मुल्क खुश है |सभी को पुलिस और कोर्ट पर पहले से ज्यादा यकीन करने का सार्थक कारण मिल गया है |अब मुकेश सिंह ,अक्षय ठाकुर ,विनय शर्मा और पवन गुप्ता को तिहाड़ जेल में बंद रह कर अपनी फांसी का इंतजार करना है |अब भी कुछ ऐसी प्रक्रिया बच गई है जिसे हाई कोर्ट से निपटाने के बाद इन अपराधियों को फांसी के फंदे पर झूलना ही होगा |इस घटना की संवेदनशीलता को देखते हुए इसकी भी कोई उम्मीद नहीं है राष्ट्रपति से कोई दया या रहत जैसी चीज इन दरिंदों को मिलेगी |
अब तक की पूरी प्रक्रिया में कोर्ट और पुलिस ने अपनी -अपनी भूमिका का निर्वहन कर दिया है |ज्यादातर ऐसे मामलों में देखा गया है कि पुलिस और कोर्ट देर से ही सही अपना काम करते जरूर हैं लेकिन हर बार समाज की भूमिका पर सवाल जरूर खड़ा होता रहा है |देश में इस वक़्त बलात्कारियों के विरुद्ध बेहद सख्त कानून है |२०१२ के बाद भी कई और कानून बने |इन सबके बावजूद हर प्रदेश ,हर शहर और हर गाँव में रोजाना ऐसी घटनाएं घट रही हैं |अगर ये कंहूँ कि ,ऐसी घटनाएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं तो ज्यादा सही होगा |इसका सबसे बड़ा कारण है समाज का रवैय्या |समाज बलात्कार कि घटनाओं को हमेशा पुलिस की जिम्मेदारी कह कर ,अपनी जिम्मेदारी से बचता रहा है |यही सोच घातक है |हमें अच्छी तरह मालूम है कि पुलिस अक्सर ऐसे मामलों को शुरू में दबाने की कोशिश करती है |निचले स्तर पर कुछ पैसे ले – देकर अपराधियों को छोड़ देने के कई मामले सामने आते रहते हैं |शुरूआती स्तर पर तो पुलिस वाले लड़की के घर वालों को ही बदनामी की बात कह कर हताश और निराश कर देते हैं |फिर हमारे समाज में रहने वाले ऐसे वकील जो इसे अपने पेशे से जोड़कर अपराधियों के बचाव में जुटे रहते हैं |हमारे देश की कानूनी प्रक्रिया भी बड़ी जटिल और जरूरत से ज्यादा लम्बी है |इन सब के बीच हमारी सामाजिक सोच और संवेदनहीनता |हमें अपने काम से काम रखने की इतनी आदत पड़ गई है कि हम कुछ खतरे उठाकर ही सही , कभी भी बलात्कार की शिकार लड़की या महिला के पक्ष में सामजिक एकजुटता नहीं दिखाते |हम सिर्फ उसी वक़्त हरकत में आते हैं जब हमारा कोई अपना ऐसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है |और उस वक़्त होता यही है कि कोई हमारे साथ खड़ा नहीं होता |समाज के इस रवैय्ये का लाभ अपराधी ,पुलिस और अपराधियों के पैरवीकारों को मिल जाता है |दूसरी बात है हमारी सामाजिक सोच , जो आज भी सदियों पुरानी है ,कम से कम इस मामले में तो जरूर |ऐसी दुर्घटनाएं होने पर हम पीडिता को ही दोष देते हैं ,उसे ही अपनी जुबान बंद रखने को कहते हैं |इस सामाजिक सोच से बलात्कारियों के हौसले और बढ़ते हैं और वो अपना अगला शिकार तलाशने में जुट जाते हैं |आज सख्त जरूरत है समाज को आगे आने की ,एकजुट होने की और अपनी सोच बदलने की |सिर्फ और सिर्फ समाज की एकजुटता ही इस पाशविक अपराध से हमारे समाज को मुक्ति दिलाने का रास्ता खोलेगी |तो अब सरकार , पुलिस और किसी और का मुह देखना बंद कीजिये और खुद आगे बढिए |