नीतिश को एक दिन पहले हीं जानकारी मिल गई थी छापे की ,इसीलिए वे राजगीर चले गए

 

सूत्र बताते हैं कि नीतिश को एक दिन पहले ही छापे की जानकारी मिल गयी थी और किसी  भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पुलिस बल को सतर्क कर दिया गया था |नीतिश कुमार और उनका दल छापे के बाद की स्थितियों पर नजर बनाए हुए है | पूछने पर उनकी पार्टी के लोग कहते हैं कि अभी हम इस पर क्या प्रतिक्रिया दे सकते हैं

इधर  सीबीआई ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि लालू ने रेल मंत्री रहते हुए कैसे ये घोटाला किया था। सीबीआई ने ये खुलासा भी किया कि कैसे टेंडर के बदले लालू ने 32 करोड़ की जमीन को 65 लाख रुपये में खरीदा।
सीबीआई अधिकारी राकेश अस्थाना ने बताया कि पांच जुलाई को केस दर्ज किया गया था। सीबीआई ने लालू और उनके परिवार समेत आठ लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120 बी (आपराधिक साजिश), 13, 13 (1) (डी) पीसी एक्ट का मामला दर्ज किया गया।
सीबाआई ने बताया कि रेलवे के दो होटल बीएनआर होटल पुरी और रांची के बीएनआर होटल को आईआरसीटीसी को ट्रांसफर किए गए थे। इन होटलों की देखभाल करने और रखरखाव करने के लिए प्राइवेट कंपनी को लीज आउट का फैसला लिया गया। लीज आउट करने के लिए रेलवे ने टेंडर निकाले थे। ये टेंडर सुजाता प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए। जांच में पाया गया कि टेंडर देने में गड़बड़ी की गई थी और इस प्राइवेट कंपनी को लाभ दिया गया। सुजाता प्राइवेट लिमिटेड के मालिक विजय कोचर और विनय कोचर है।
सुजाता प्राइवेट लिमिटेड ने दो होटलों के टेंडर मिलने के बाद लालू प्रसाद यादव के नाम पर जमीन दी थी। ये जमीन सीधा लालू प्रसाद यादव को ट्रांसफर नहीं की गई थी। पहले ये जमीन सरला गुप्ता की कंपनी मैसर्स डिलाइट प्राइवेट लिमिटेड को ट्रांसफर की गई। 2010 और 2014 के बीच में जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री नहीं थे तो ये जमीन लालू प्रसाद यादव की कंपनी मैसर्स लारा प्रोजेक्ट एलएलपी को ट्रांसफर की गई।
सीबीआई ने बताया कि 32 करोड़ की जमीन को सिर्फ 65 लाख रुपये में ट्रांसफर की गई थी। इन्हीं गड़बड़ियों के चलते सीबीआई ने शुक्रवार को लालू प्रसाद यादव के 12 ठिकानों पर छापेमारी की है।

अब लालू को हो सकती है मुश्किल 

जानकारों का यह भी मानना है कि सीबीआई ने इस मसले पर काफी मंथन के बाद ही छापामारी की है। वैसे लालू प्रसाद को पहले से यह आशंका थी कि वह कानून के घेरे में आ सकते हैं, इसीलिए 5 जुलाई को पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया था कि 27 अगस्त की रैली के पहले अगर मुझे जेल जाना पड़ा तो पार्टी के हरेक कार्यकर्ता को लालू बनना पड़ेगा।
बहरहाल, लालू प्रसाद की सबसे बड़ी चुनौती अब पार्टी को एकजुट रखने की होगी। अगर उन्हें पत्नी और पुत्र के साथ जेल जाना पड़ा तो उनकी पार्टी को नेतृत्व कौन देगा। बड़े पुत्र तेजप्रताप से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह पार्टी को संकट की इस घड़ी में संभाल पाएं।  बड़ा सवाल यह भी है कि असंतुष्ट चल रहे विधायकों को पार्टी से बांधे रखने की क्षमता किसमें है? यह सवाल ज्यादा मौजू हैं, क्योंकि लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और तेजस्वी के बाद पार्टी में कोई ऐसा नेता नजर नहीं आता, जिसे कोई और अपना नेता स्वीकारने को तैयार हो।

अब राजद के वैसे नेता सक्रिय हो सकते हैं जो काफी समय से अंदर ही अंदर असंतुष्ट चल रहे हैं। परिवारवाद के कारण भी राजद में असंतोष रहा है। कई वरिष्ठ नेताओं को हाशिये पर रखकर अपने दोनों पुत्रों को राज्य कैबिनेट में वरीयता क्रम में दूसरे और तीसरे स्थान पर रखवाने को लेकर भी नाराजगी है। लेकिन लालू प्रसाद के आभा मंडल और जनाधार के कारण उनके समाने खुलकर विरोध करने का साहस लोग नहीं दिखा पाते हैं। वैसे राजद को तीन साल पहले 2014 के फरवरी में एक बार विद्रोह का सामना भी करना पड़ा, जब तेरह विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी। प्रत्यक्ष तौर पर पार्टी में बगावत का नेतृत्व सम्राट चौधरी कर रहे थे, लेकिन नेपथ्य में लालू प्रसाद के बेहद करीबी रहे राजद के एक वरिष्ठ नेता थे। हालांकि लालू प्रसाद के आह्वान पर ऐन मौके पर उस नेता ने इरादा बदल लिया और पार्टी को बचाने की मुहिम में जुट गए, वरना बागी विधायकों की संख्या ज्यादा भी हो सकती थी। ऐसे में पार्टी दो फाड़ भी हो सकती थी। हालांकि उक्त नेता सरकार में महत्वपूर्ण महकमा नहीं मिलने के कारण अब भी नाराज बताए जा रहे हैं।

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