सिर्फ मुआवजों और घोषणाओं से बात नहीं बनेगी
हरनौत के निकट बस हादसे में आठ लोग जिन्दा जलकर मर गए |उन्हें उस मनहूस बस से उतरने का मौका तक नहीं मिला जिसमे बैठ कर उन्होंने अपने -अपने घर पहुंचने का सपना देखा था |खाक हो गया उनका सपना |अखबारों को एक दिन की लीड मिल गई और सरकार को एक और मुआवज़े की घोषणा का मौका |जब भी ऐसी कोई दुर्घटना ( जो जान -बूझ कर करवाई जाती है ) होती है ,हम सब के सामने अधिकारियों का” कर्त्तव्य परायण “और सरकार का “अति संवेदनशील” चेहरा सामने आ जाता है |अधिकारी, दोषी के विरुद्ध सख्त से सख्त कदम उठाने की घोषणा करते हैं और सरकार मरने वालों के परिवार को ज्यादा और घायलों के परिवार को कम मुआवज़े की घोषणा करदेती है | इस बार भी ऐसा ही हुआ है | जिंदा जल जाने वालों के परिवार को सरकार ने चार -चार लाख की राशि दी गई |लोगों को मरने के बाद जलाया जाता है ,लेकिन जो जिंदा जलकर मर गए उनकी असहनीय पीड़ा का अंदाजा लगाना भी नामुमकिन है |पटना के जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल ने दोषी बस एजेंसी (बाबा रथ ट्रेवल्स ) के सभी बसों के परिचालन पर रोक लगाने और उनकी परमिट रद्द करने की अनुशंशा राज्य परिवहन आयुक्त से की है |
तात्कालिक रूप से यह भी घोषणा की गई है कि ,अब से बसों में ज्वलनशील पदार्थ ले जाने पर कठोर कार्रवाई की जाएगी |बसों की फिटनेस जांचने का आदेश जारी कर दिया गया है |सब कुछ ठीक वैसे ही हो रहा है जैसे हर हादसे या “जान बूझ कर करवाई गई ” दुर्घटना के बाद होता है | इस बार भी बस कंडक्टर ने यात्रियों के विरोध के बावजूद महज़ १०० रूपये के किये कार्बाइड की आठ बोरिया बस में रख ली |ड्राईवर सीट के बगल में |कभी आप बिहार की इन बसों में सफ़र करें तो आपको पता चल जाएगा कि , इन बसों के ड्राईवर और कंडक्टर किस बेहूदगी और बदतमीजी से यात्रियों से पेश आते हैं |ऐसे में इनसे यह उम्मीद करना कि ये यात्रिओं की बात मानेगे ,नासमझी होगी |
बहरहाल , हर हादसे के बाद जागने का नाटक करने वाले राज्य के सभी सम्बंधित उच्चाधिकारियों को ये बात अच्छी तरह पता है कि , अपवादों को छोड़कर शायद ही ऐसी कोई बस हो इस राज्य में जो निर्धारित नियमो का पालन करती हो | सभी बसों में क्षमता से बहुत ज्यादा यात्री ठूस लेना ,गैस के सिलिंडर लाड लेना , कार्बाइड की बोरियां भर लेना आम बात है |जिन्हें इन पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी दी गई है ,उन्हें यात्रियों की जान से ज्यादा अपनी नौकरी और जेब का ज्यादा ध्यान रहता है | उनकी भी अपनी मजबूरी है |राज्य की ज्यादातर बसें दबंग राजनीतिज्ञों और बड़े -बड़े अधिकारीयों की हैं ,या फिर उनके संरक्षरण में चल रही हैं |अब ऐसे में इन बस वालों को नियम पालन की हिदायत तो वही देगा जिसे अपनी नौकरी प्यारी न हो ,या फिर जिंदगी |हो सकता है कुछ लोगो को ये बातें उतनी सच प्रतीत न हों ,लेकिन इन बातों की सच्चाई जांचनी हो तो बिहार की किसी भी बस पर (किसी भी रूट पर ) दो – चार बार सफ़र कर लीजिये | जिस बाबा रथ ट्रेवल्स के बसों की परमिट रद्द करने की बात की जा रही है वो कितनी खोखली साबित होने वाली है इसका पता कुछ ही दिनों बाद बिहार की सड़कों पर इस एजेंसी की दौड़ती बसों से लग जाएगा |आठ यात्रियों को जिन्दा जलाकर मार देने वाले बस कंडक्टर और ड्राईवर भी कुछ ही दिनों में निर्दोष साबित कर दिए जाएंगे |सवाल उठता है कि , हमारी सरकार और हमारे अधिकारी कब सही अर्थों में जनता के लिए संवेदनशील होंगे और पहले से बने पर्याप्त नियमों का पालन सख्ती से करवाना शुरू करेंगे | वैसे इन सब बातों के अलावा हमें भी जागना होगा ,और जम कर विरोध करना होगा बस मालिकों और उनके उन तमाम कर्मचारियों का जो हमारे साथ गुंडों – मवालियों जैसा बर्ताव करते हैं |सामूहिक विरोध से ही ऐसी हरकतों पर विराम लग सकता है | हमें अपने प्रयासों से सरकार और प्रशाशन को मजबूर करना होगा कि ,वे हमारे जान -माल की सुरक्षा पूरी ईमानदारी से करें |