आज के मीडिया का काला सच
जब से एन डी वी प्रकरण देश और मीडिया के सामने आया है प्रेस की आज़ादी और उसकी गरिमा की बातें होने लगीं हैं |सुनने में कितना अच्छा लगता है …” मीडिया लोकतंत्र का चौथा खम्भा “, ” पत्रकार लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी “, या फिर ” मीडिया दबे -कुचलों की आवाज़ “, ” लोकतंत्र की आत्मा ” वगैरह -वगैरह | लेकिन इन मुहावरों की हकीकत बड़ी ही डरावनी और इनका चेहरा बहुत ही बदसूरत है | मीडिया के बारे में आप तब तक नहीं जान सकते ,जब तक उसे करीब से न देखें | मेरा इरादा लोगों को मीडिया की भयावहता से रूबरू कराने का नहीं बल्कि उसकी सच्चाई से नकाब हटाने का है |आज मीडिया किसी भी कोने से ” मिशन ” नहीं रह गयी है |ये एक सशक्त जरिया है किसी भी बिजनेस हाउस के लिए नेताओं और बड़े अधिकारियों के करीब जाकर अपने कारोबार को आगे बढाने और सही -गलत पर पर्दा डालने का |जो लोग मीडियाकर्मी के रूप में अपनी ” नौकरी ” कर रहे हैं ,कभी उनसे उनका दर्द पूछिए |सभी सत्य उनके पास होता है , उससे जुड़े दस्तावेज भी उसके पास होते हैं ,लेकिन वह उसे समाचार बनाकर दिखा नहीं सकता या फिर उसे छाप नहीं सकता |आप ये ज़रूर जानना चाहेंगे कि ऐसा क्यूं | ऐसा इसलिए कि वो सत्य किसी ऐसे व्यक्ति या घराने से जुड़ा होता है जो उस अखबार या चैनल के मालिक का करीबी है |आपको अगर एक बड़ा और कामयाब रिपोर्टर बनना है तो आपके लिए यह जानना ज्यादा जरूरी नहीं है कि कौन सी खबर छापी जाए ,बल्कि यह जानना उससे भी ज्यादा जरूरी है कि , कौन सी खबर दबा देनी है |कब सच लिखना है , कितना सच लिखना है और किसके बारे में लिखना है ,यह कला आपको सीखनी होगी |आज के संपादक भी बेहद मजबूर हैं | उन्हें भी मीडिया हाउस मालिकों ने सिर्फ एक कर्मचारी बनाकर छोड़ दिया है |दर्ज़नो ऐसे मौके आते हैं जब उन्हें ये पता होता है कि , उनके रिपोर्टर ने शानदार और जानदार स्टोरी की है लेकिन अपनी आत्मा पर पत्थर रखकर वो उसे छापने से मना कर देते हैं |इसकी वज़ह होती है ” मालिकों के हितों और रिश्तों की रक्षा “|महात्मा गाँधी और पंडित जवाहर लाल नेहरु के नामो की दुहाई देने वालों की ऐसी लम्बी फेहरिस्त है जो मीडिया कर्मियों का जम कर शोषण कर रहे हैं |आज की तल्ख़ सच्चाई यह है कि ,मीडिया ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने का माध्यम है |संपादक और बड़े -बड़े रिपोर्टर इसके ” सम्मानित पी आर ओ ” बनकर रह गए हैं |जिसने “समझदारी ” से काम लिया वो नौकरी में रह गया , जिसने थोडा भी विरोध किया वो नौकरी से बाहर |शायद यही वजह है कि ,अच्छे और सच्चे मीडिया कर्मियों को कदम _ कदम पर अपमान का घूँट पीना पड़ता है |कोई भी भ्रष्ट नेता या अधिकारी उन्हें नौकरी से बाहर करवा देने की धमकी दे देता है ,और उस वक़्त प्रणव रॉय या उनकी हिमायत करने वाले एक भी “बड़े मीडियाकर्मी ” सामने नहीं आते |नेताओं और अधिकारियों के “दिशानिर्देश ” पर चलना मीडिया कर्मियों की मजबूरी बन चुकी है और इस मामले में प्रेस काउंसिल और एडिटर्स गिल्ड भी कभी न ख़त्म होती दिखने वाली खामोशी ओढ़ चुका है |शायद यही वजह है कि आज कोई भी मीडिया का सम्मान सही मायनों में नहीं करता |सभी समझ चुके हैं कि मीडिया को “हैंडल ” करना है तो मालिकों को दोस्त बनाये रखो |प्रेस काउंसिल कहीं से भी पत्रकारिता या पत्रकारों के हितों की रक्षा करता नज़र नहीं आ रहा |शायद इस वजह से स्थिति बद से बद्दतर होती जा रही है |महात्मा गाँधी जिन्दा होते तो पत्रकारों और पत्रकारिता के हितों और सम्मान की बात जरूर करते |आज के परिदृश्य में उनकी बात कितनी मानी जाती इसके बारे में कुछ कहना शायद उचित नहीं होगा |