खिलजी के हजारों योद्धा मारे गये और खिलजी को भागना पड़ा, लेकिन महल में झूठा संदेश पहुंच गया, शोक में रानियों ने जौहर कर लिया

मेवाड़ की रानी पद्मिनी की ही तरह रतनगढ़ की राजकुमारी को भी अलाउद्दीन खिलजी से अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर करना पड़ा था। दतिया जिले में सिन्ध नदी के किनारे रतनगढ़ गांव बसा हुआ है। घने जंगलों में बना दुर्ग और देवी मंदिर गवाह है कि यहां राजा रतन सेन ने देश-धर्म की रक्षा के लिए मुस्लिम आक्रमणकारियों अंतिम सांस तक लोहा लिया था।
– 13 वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ की रानी पद्मावती को हासिल करने के लिए आक्रमण किया था। रानी ने अपनी दासियों और राजपरिवार की दूसरी महिलाओं के साथ जौहर कर अपनी लाज बचाई थी।
– इसके बाद अलाउद्दीन की नजर रतनगढ़ की राजकुमारी माछूला पर पड़ी थी। उसे हासिल करने के लिए अलाउद्दीन ने रतनगढ़ पर हमला किया था। राजा रतन सेन ने अपनी बेटी की लाज और राजपूत गौरव की रक्षा के लिए संघर्ष किया था।
– राजा ने रनिवास की रक्षा का भार अपने छोटे भाई कुंवर जू को सौंप कर अलाउद्दीन का सामना किया था। जंग में खिलजी के हजारों योद्धा मारे गये और उसे भागना पड़ा था, लेकिन महल में उलटा संदेश पहुंच गया, शोक में पड़ी रानियों ने जौहर कर लिया।
– राजा के आदेश पर कुंवर जू राजकुमारी माछूला को ले लेकर अलग छिपे हुए थे। जौहर की लपटें उठती देख माछूला ने भी खुद को घास के ढेर में घेर कर जौहर कर लिया। इसके बाद राजकुमारी को नहीं बचा सकने की ग्लानि में कुंवर जू ने भी खुद को उसी आग में जला लिया।
– बाद में राजा रतन सेन ने अलाउद्दीन के सैनिकों की लाशें सिन्ध नदी के तट पर बसे गांव के नजदीक दफनाई थीं, जो आज ‘हजीरा’ कहलाता है।
राजकुमारी व कुंवर जू की याद में बना मंदिर
– राजकुमारी माछूला को भी यहां देवी रूप में एक मढ़ी में प्रतिष्ठित किया गया है। राजकुमारी माछुला व कुंवर जू की याद में यहां मंदिर बनवाया गया, जो आज रतनगढ़ माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर देश भर के देवी भक्तों की आस्था का केंद्र है।
– कुंवर जू भी बुंदेलखंड के लला हरदौल की तरह यहां के लोक देवता के समान पूजे जाते हैं। हर साल लगने वाले मेले में आकर सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति ठीक हो जाते हैं। रतनगढ़ का माता मंदिर घने जंगलों में होते हुए भी सदियों से जन आस्थाओं का केंद्र रहा है।

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