सवाल मध्यप्रदेश का ही नही बिहार का भी है

 

“यहां आते-आते सूख जाती है कई नदियां
मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा”।

जगल,बंजर और पानी का अभाव झेल रहे मध्यप्रदेश के किसान आज देश का सबसे बड़ा अन्नदाता बना हुआ है। दिल्ली,मुम्बई और कोलकाता की अनाज मंडियों से लेकर पटना के मारूफगंज और मीठापुर तथा पूर्णिया के गुलाबबाग मे अच्छे क्वालिटी के गेहूँ की मांग करते ही तुरंत जवाब मिलेगा की हां सर एमपी गेहूँ है मगर कीमत बाजार के उपलब्ध लोकल गेहूँ से पांच रु.मंहगा है। सतना का चना देश का वेस्ट क्वालिटी का माना जाता है और वह देश की जरूरत को पूरा करता है।

किसान का बेटा होने के नाते खेती मेरी उत्सकता नही जीवन शैली भी है। किसी जमाने मे मुंगेर का बरियारपुर का कल्याणपुर टाल का चना और बड़हिया तथा मोकामा का टाल का गेहूं और मसूर देश का सबसे उम्दा क्वालिटी का माना जाता था मगर सरकार की उपेक्षा और जल प्रबंधन का अभाव इसको लेकर डूब गया।
वर्ष 2000 मे नीतीश कुमार भारत सरकार के कृषि मंत्री थे और मेरे ही अनुरोध पर भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के कृषि विशेषज्ञों और जल प्रबंधन की टीम आई थी और रिपोर्ट भी दिया। लालू यादव दंपत्ति राज्य की सत्ता मे थे और खेती उनका ऐजेंडा था ही नहीं। बाद मे नीतीश जी आए और मै इन सवालो पर बार-बार दबाव बनाया। उनका जवाब था बड़हिया,मोकामा टाल भी तो है। बक्सर से लेकर पीरपैंती तक फैला दियारा भी तो है। कोसी का तटवर्ती इलाका भी तो है। यह मांग सब जगह से उठेगी। बाद मे देखा जाएगा।
इस सरकार के पास नीतीश कुमार को अपनी निजी छवि चमकाने के लिए गुरूगोविन्द सिंह जयंती पर 500 करोड़ रु.है मगर कल्याणपुर से लेकर मुजफ्फरगंज और भगलपुरा तक किसानो के लिए 25 करोड़ नही है।
मध्यप्रदेश के किसानो की उन्नत खेती का दौर ऐसे नही आई है। किसानो की मिहनत और सरकार की मदद दोनो मिलकर भूमिका अदा करती है।
मध्यप्रदेश का यूपी से लगा भिंड मुरैना और चंबल से लेकर कुछ पश्चिमी हिस्सा कृषि के दृष्टि से पिछड़ा है और पानी का भी आभाव है। कर्ज मे दबे किसानो की पीड़ा है की परोश (यूपी) के किसानो का कर्ज माफ हो गया है तो उनका क्यों नहीं? इससे भी बद्तर स्थिति बिहार की है। गांधी के चंपारण सत्याग्रह के नाम पर चलने वाले नौटंकी मे गैर उत्पादक कार्यों पर हजारो करोड़ बहाने के बञाय बिहार के मुख्यमंत्री किसानो को ऋण मुक्त कर देते तो एक अर्थ मे सच्ची श्रद्धान्जिल होती। गांधी तो चंपारण किसानो की दुर्दशा और उन्हे शोषण की उत्पीड़क जड़ता से मुक्त कराने आए थे। प्रगति और विकास से जुड़े बरियारपुर-खड़गपुर के किसानो की लंबित योजनाओ से लेकर टाल के जलजमाव तक कब पहुंचेगी सरकार? भ्रष्ट और नौटंकीबाजो के गठबंधन की शब्दों की लफ्फाजी से राजनीति हो सकती है विकास नही। जितना समय नीतीश कुमार लालू प्रसाद का इन्तजाम करने मे लगा रहे है वही किसानो पर लगा दे तो बिहार का कायाकल्प हो जाएगा।

दिनेश सिंह के विचार

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