मन्दरांचल में ६ से १० नवम्बर होने जा रहा विराट रुद्राक्ष महाभिषेक यज्ञ
धर्म जागरण समन्वय के क्षेत्र प्रमुख सूबेदार जी ने बताया कि ६ से १० नवम्बर के बिच रुद्राक्ष महाभिषेक महायज्ञ का आयोजन होने जा रहा है |इस यज्ञ का आयोजन आर एस एस की प्रमुख गतिविधि धर्म जागरण समन्वय के द्वारा किया जा रहा है |यज्ञ के दौरान प्रतिदिन लगभग १ लाख लोगों के भंडारे का आयोजन किया जाएगा |यज्ञ में भारी संख्या में वनवासियों की भी सहभागिता होगी |इस आयोजन के कारण यहाँ के लोगों में भरी उत्साह देखा जा रहा है |अभी से ही हजारों की संख्यां में सेवादार जुटने शुरू हो गए हैं |
भागलपुर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर बसे बांका जिले में मंदार पर्वत, लगभग 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा सा पहाड़ है। इस पहाड़ को मंदार हिल के नाम से भी जाना जाता है।
इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में कई कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से एक कहानी ऐसी है कि देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया था,जब समुद्र मंथन किया गया तो मंदार पर्वत को मथनी और उस पर वासुकी नाग को समेट कर रस्सी का काम लिया गया था। पर्वत पर अभी भी धार दार लकीरें दिखती हैं जो एक दूसरे से करीब छह फुट की दूरी पर बनी हुई हैं और ऐसा लगता है कि किसी गाड़ी के टायर के निशान हों। ये लकीरें किसी भी तरह मानव निर्मित नहीं लगतीं। जन विश्वास है कि समुद्र मंथन के दौरान वासुकी के शरीर की रगड़ से यह निशान बने हैं। मंथन के बाद जो हुआ वह अलग कहानी है। पर अभी भी पर्वत के ऊपर शंख-कुंड़ में एक विशाल शंख की आकृति स्थित है| कहते हैं शिवजी ने इसी महाशंख से विष पान किया था। हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे।
वहीं एक कथा यह भी प्रचलित है कि भगवान विष्णु ने मधुकैटभ राक्षस को पराजित कर उसका वध किया और उसे यह कहकर विशाल मंदार के नीचे दबा दिया कि वह पुनः विश्व को आतंकित न करे। पुराणों के अनुसार यह लड़ाई लगभग दस हजार साल तक चली थी।
हिंदू और जैन धर्म के अनुयायी के लिए इस पहाड़ पर मंदिर बने है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस पहाड़ पर एक ज्योर्तिलिंग स्थापित किया गया था, और इस पहाड़ का उपयोग, समुद्र मंथन के दौरान मथनी के रूप में किया गया था। मंदार पर्वत पर एक तालाब स्थित है जिसे पापहारनी तालाब के नाम से जाना जाता है। इस तालाब के बीच एक छोटा सा मंदिर है।
मंदार पर्वत पर स्थित है पापहरणी तालाब
मंदार पर्वत पर पापहरणी तालाब स्थित है। प्रचलित कहानियों के मुताबिक कर्नाटक के एक कुष्ठपीड़ित चोलवंशीय राजा ने मकर संक्रांति के दिन इस तालाब में स्नान किया था, जिसके बाद से उनका स्वास्थ ठीक हुआ। तभी से इसे पापहरणी के रूप में जाना जाता है। इसके पूर्व पापहरणी ‘मनोहर कुंड’ कुंड के नाम से जाना जाता था।
तालाब के बीच स्थित है लक्ष्मी -विष्णु मंदिर
पापहरणी तालाब के बीचों बीच लक्ष्मी -विष्णु मंदिर सहित है। हर मकर संक्रांति पर यहां मेले का आयोजन होता है। मेले के पहले यात्रा भी होती है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं।
हर वर्ष निकलती है यात्रा
मौत से पहले मधुकैटभ राक्षस ने भगवान विष्णु से यह वादा लिया था कि हर साल मकर संक्रांति के दिन वह उसे दर्शन देने मंदार आया करेंगे। कहते हैं, भगवान विष्णु ने उसे आश्वस्त किया था। यही कारण है कि हर साल मधुसूदन भगवान की प्रतिमा को बौंसी स्थित मंदिर से मंदार पर्वत तक की यात्रा कराई जाती है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं।