खतरे की घंटी

भद्र लोगों(वामपंथी) की राजनीति देश को कभी विकसित नही होने देगा। यह बात विवेक अग्निहोत्री की किताब अर्बन नक्सल में एक टैक्सी चालक अपने कस्टमर से कहता है । वह कहता है यहां गरीबों की जो राजनीत होती है उस राजनीति से सबसे ज्यादा प्रभावित यहां के गरीब ही होते हैं ।आए दिन होने वाले हड़ताल और विकास योजनाओं का जो विरोध होता है उससे यहां के गरीबों से रोजगार छिनता है लेकिन एसी रूम में रहने वाले और लंबे लंबे भाषण देने वाले ,मजदूरों के अधिकार पर बड़े-बड़े डिबेट करने वाले लोग गरीबों के विकास के लिए कुछ भी ठोस नहीं कर पाते हैं। गरीबों के प्रति उनकी चिंता की बात तब सत्यापित होती जब वे अपनी सरकार वाले राज्यों में गरीबों का कल्याण कर पाते या उनका जीवन स्तर सुधार पाते लेकिन अगर आप उनके लंबे शासनकाल वाले राज्यों पर नजर डालिएगा तो पाइएगा उनकी स्थिति अन्य राज्यों के गरीबों की तुलना में ज्यादा बदतर है- पश्चिम बंगाल हो या केरल हो या फिर त्रिपुरा हो हर जगह यही स्थिति है।
एक बात में इनका अवश्य योगदान है जहां इनका बस चला है इन्होंने घुसपैठ खूब कराया। घुसपैठ के कारण स्थिति यह है कि पश्चिम बंगाल और असम में मुस्लिम जनसंख्या अगले कुछ दशकों में 50% से अधिक हो जाएगी।
2011 जनगणना के मुताबिक असम में जीरो से 5 वर्ष आयु वर्ग के कुल संख्या में मुस्लिम आबादी की प्रतिशतता असम में 45% , पश्चिम बंगाल में 35% और केरल में 37% है इसका मतलब यह हुआ की दो दशकों के अंदर मुस्लिम वोटर की संख्या लगभग 40 से 50% के बीच इन राज्यों में हो जाएगी। इसका मतलब क्या हो सकता है इसका अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है अगर आप में सम्यक इतिहास बोध है । और अगर आप तथाकथित रूप से सेक्यूलर है या वामपंथी हैं तो इस आंकड़े में आपको कोई विसंगति दिखाई नहीं पड़ेगा। 1850 के आसपास पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान में यानी तब के पंजाब और बंगाल में बहुसंख्यक आबादी हिंदू थी उन्नीस सौ के पहले तक पाकिस्तान की मांग नहीं हुई पर 1920 के बाद इन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हो गयी और तब मुस्लिम लिंग और जिन्ना के जुगलबंदी ने क्या गुल खिलाया यह किसी से छिपा नहीं है। 1946 में जो चुनाव हुए थे उस में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के समर्थन में चुनाव लड़ा था। पूरे देश में मुस्लिम लीग को अपने कांस्टीच्यूएन्सी में बहुमत मिला था।उस समय भारत की कुल आबादी में मुसलमानों की प्रतिशतता लगभग 30 % थी। यानी 30% की आबादी ने इतने बड़े संगठन कांग्रेस को और महात्मा गांधी जैसे बड़े नेता को भारत विभाजन के लिए मजबूर कर दिया -उस महात्मा गांधी को मजबूर किया जिन्होंने कहा था कि हिंदुस्तान का बंटवारा मेरे लाश पर होगा। मैं किसी धर्म विशेष पर आरोप नहीं लगा रहा हूं केवल तथ्य बता रहा हूं और इतिहास से सबक लेकर आसन्न संकट से आपको अवगत करा रहा हूं आप उससे सहमत या असहमत हो सकते हैं – लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन छुपा लेने से समस्या टलेगी नहीं ।आज शायद भारत में गांधी या पटेल जैसे बड़े नेता नहीं है। जब वो नहीं संभाल सके तो क्या हमारे वर्तमान पीढ़ी के नेता संभाल पाएंगे? सोचिए!

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