सेना प्रमुख का करारा जवाब
सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने सोशल मीडिया वालों और मानवाधिकार की आड़ में आतंकियों की पैरवी करने वालों को सतीकौर करारा जवाब दिया है |जब से मेजर लितुल गोगोई ने एक पत्थरबाज को जीप के आगे बांध कर कई लोगों की जान बचाने का साहसिक कार्य किया है ,ढेर सारे तथाकथित मानवतावादी लोगों को बदहजमी हो गई है |सोशल मीडिया पर तो जैसे मानवाधिकार रक्षकों की बाढ़ सी आ गई है |सभी अपनी सहानुभूति उस युवक के लिए ही जताने में लगे हैं |ऐसे समय में सेना प्रमुख ने बड़ी ही दृढ़ता से न सिर्फ मेजर गोगोई का बल्कि वादी में तैनात सभी सैनिको का अपने बयां से हौसला बढाया है |इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है |जनरल रावत ने कश्मीरी युवक को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किये जाने का पुरजोर बचाव किया है |उन्होंने मेजर गोगोई की तारीफ की और कहा कि ,उनकी सूझ – बूझ से दर्जनों की जान बच गयी |उन्होंने कहा कि , कश्मीर में तैनात हमारे सैनिकों का सामना ऐसे लोगों से है जो छद्म और घृणित युद्ध करते हैं |वे हमारे सैनिको पर पत्थर और तेजाब बम फेंकते हैं जिससे आये दिन हमारे जवान घायल होते रहते हैं |उन्होंने सीधा सवाल किया कि ,”ऐसे में सेना प्रमुख के नाते क्या मैं अपने जवानों को मरने के लिए कह दूं |उनसे कहूं कि तुम सब अपनी जान देते रहो और मैं तुमलोगों के लिए कफ़न के लिए तिरंगा और तुम्हारे शवों के लिए ताबूत भिजवाता रहूँगा |” ज़ाहिर है हमारे जवान वहां दोहरी लड़ाई लड़ रहे हैं |एक तो उन्हें सीमा की रक्षा करनी है और दूसरे आतंकियों से भी रोजाना निपटना है ,जो फौजियों के साथ -साथ निरीह नागरिकों के जान -माल को नुकसान पहुंचाते रहते हैं |अब ऐसे में कुछ लोग आतंकियों का साथ देने के क्रम में हमारे सैनिकों को नुक्सान पहुंचाते हैं तो उन्हें इसकी खुली छूट नहीं दी जा सकती |मेजर गोगोई को उनकी दिलेरी और सूझबूझ के लिए सेना की ओर से सम्मानित भी किया गया है |उन्होंने मानवाधिकार के तथाकथित पैरोकारों से जानना चाह कि सेना के जवान क्या सिर्फ मरने के लिए हैं |उनकी जान क्या कीमती नहीं ,क्या वे देश के नागरिक नहीं ,क्या उनके परिवारों की त्रासदी मानव त्रासदी नहीं |उन्होंने इन सभी मसलों पर लोगों से ज्यादा संजीदगी की अपेक्षा करते हुए आम लोगों को भी सेना का मनोबल बढाने की बात कही , न की आतंकियों और उनके पत्थरबाज हमदर्दों की |
इतना तो जग ज़ाहिर हो चुका है कि ,कुछ लोगों का नजरिया मानवाधिकार को लेकर हमेशा दोहरे मानदंड वाला होता है |उन्हें अपराधियों की चिंता ज्यादा होती है ,जो लोग मारे जाते हैं उनकी या उनके परिजनों की चिंता इन ‘तथाकथित ‘ मानवाधिकार के सिपाहियों को नहीं होती |ये बात सचमुच चौंकाती भी है और कई सवाल भी खड़े करती है |बहरहाल , जनरल रावत ने अपनी सेना के मनोबल के लिए जो कहा है ,या सोचा है वो सौ फीसद सही है |जिसे भी भारतीय सेना पर फक्र है वो कभी भी मानवाधिकार की आड़ में आतंकियों की वकालत नहीं करेगा |हर भारतीय को मेजर गोगोई पर नाज़ होना चाहिए |