लोकतंत्र का चीरहरण करते माननीय

उत्तर प्रदेश विधान सभा सत्र के पहले दिन जो कुछ भी हुआ वह बेहद अमर्यादित और असंसदीय था |जिन माननीयों पर लोकतंत्र की रक्षा का भार है वही इसके चीरहरण में जी -जान से जुटे हुए हैं |वैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा में जो कुछ भी हुआ वह कमोबेश अब ज्यादातर विधानसभा में देखने को मिलने लगा है |विपक्ष पर हमले तेज करना और सरकार को घेरना कोई  नई और अमर्यादित बात नहीं लेकिन इन दिनों यह सब जिस ढंग से किया जा रहा है उसे देख -सुन कर सर शर्म से झुक जाता है |कोई जनप्रतिनिधि अपनी तमाम मर्यादा को तिलांजलि देकर विधानसभा में जब कुर्सी -मेज़ पर चढ़ कर शर्मिंदा कर देने वाली भाषा का इस्तेमाल करने लगे , मूल समस्या से हटकर सड़कछाप लोगों की तरह चीखने -चिल्लाने लगे और राज्यपाल की गरिमा को तार -तार कर दे ,उनपर कागज के गोले फेंके तो इसे आप किस नज़रिए से लोकतंत्र कहेंगे |संसद और विधानसभा दोनों ही लोकतंत्र के मंदिर हैं |लेकिन इन दोनों जगहों पर आजकल जिस ढंग से विपक्ष ने अमर्यादित व्यवहार को अपना मूलमंत्र बना लिया है उससे लोकतंत्र की गरिमा तो तार -तार हो ही रही है जनप्रतिनिधियों पर भी सवालिया निशान खड़ा होने लगा है |उत्तरप्रदेश में अब तक सपा और बसपा के विधायकों पर जो गुंडागर्दी और उसे बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है ,कल विधानसभा में इन दोनों ही पार्टियों के विधायकों ने अपने व्यवहार से उस पर मुहर लगा दी | ऐसा भी देखा जा रहा है कि ,जब -जब सदन या किसी विधानसभा की कार्यवाही का दूरदर्शन से सीधा प्रसारण होता है ,हमारे विपक्षी नेता कुछ ज्यादा ही आक्रामक दिखने का प्रयास करते हैं |कितना बेहतर हो अगर वो अपने क्षेत्र की समस्याओं के समाधान की कोशिश इतनी ही म्हणत से करे और उन लोगों के साथ न्याय करें जिन्होंने उन्हें चुन कर अपनी आवाज़ के रूप में वहां भेजा है |लेकिन कुछ नेताओं को छोड़ दें तो ज्यादातर विपक्षी नेता (जिस भी प्रदेश के हों ) जनप्रतिनिधि से ज्यादा एक ‘दबंग’ के रूप में अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं |तकलीफ तब और बढ़ जाती है जब विपक्ष के सुलझे हुए नेता भी ऐसे लोगों के सुर में सुर मिलाते नज़र आते हैं |ऐसे हुडदंगी और अमर्यादित जनप्रतिनिधि अब इस बात की जरूरत को और भी मजबूती प्रदान कर रहे हैं कि ,देश में नए सिरे से जनप्रतिनिधि कानून बने जो ऐसे नेताओं को अपने देश ,क्षेत्र और वोटर्स के प्रति ज्यादा जवाबदेह बना सके |

वैसे अगर हम हुडदंगी और दबंग व्यवहार करने वाले सांसदों और और विधायकों की ऐसे अशोभनीय हरकतों पर गौर करें और उनका विश्लेषण करें तो पायेंगे कि इन सभी का अपने क्षेत्र की समस्याओं के अध्यन से कोई लेना देना नहीं |सामान्य ढंग से भी पहले के जनप्रतिनिधियों की तरह पढने – लिखने से इन्हें कोई लेना देना नहीं |पहले के जनप्रतिनिधि बेहद पढ़ते – लिखते थे और यही वजह थी कि किसी भी विषय पर उनकी बहस , उनका पक्ष और उनकी जानकारी बड़ी सार्थक और सकारात्मक होती थी |बहरहाल , वजह जो भी हो इतना तो स्पष्ट है की ऐसे जनप्रतिनिधियों का व्यवहार “गुंडागर्दी ” की श्रेणी में आ गया है जिसे देखकर अब उनके वोटरों को भी घोर निराशा होने लगी है |एक स्वस्थ और मर्यादित लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बरक़रार रखना है तो अविलम्ब इन सब पर सख्त कदम उठाना होगा और लगाम भी लगानी होगी |

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