यूपीए सरकार अपने अंतिम दिनों में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को आतंकवादियों की सूची में डालना चाहती थी लेकिन शरद यादव ने…
अपने कार्यकाल में संघ के कुछ गिने चुने कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में फंसा के हिन्दू आतंकवाद की झूठी थ्योरी गढ़ने वाली तत्कालीन यूपीए सरकार अपने अंतिम दिनों में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को आतंकवादियों की सूची में डालना चाहती थी. उनका मानना था कि सत्र के ठीक पहले इस रहस्योद्घाटन से विपक्ष बैकफुट पर आ जाएगा , वहीं सत्ता पक्ष विपक्ष को इस मुद्दे पर घेरने की पुरजोर कोशिश करेगी . एक चैनल ने अपने पास उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर ऐसा दावा किया है. पर शरद यादव ने कांग्रेस के इन प्रयासों पर पानी फेर दिया . वे असीमानंद के के साक्षात्कार की टेप की भी फारेंसिक जांच करना चाहते थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि कांग्रेस झूठे मामले में इन्हें फंसाने का प्रयास कर रही है .जब मामला आगे नहीं बढ़ा तो एनआईए ने इस केस को बंद कर दिया.
कहा जा रहा है कि भागवत को ‘हिंदू आतंकवाद’ के जाल में फंसाने के लिए तत्कालीन सरकार के कुछ मंत्री प्रयासरत थे.इसके लिए अजमेर और मालेगांव ब्लास्ट के बाद ‘हिंदू आतंकवाद’ को आधार बनाया गया था और इसके लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के बड़े अधिकारियों पर दबाव डाला जा रहा था. दरअसल इस साजिश के लिए फरवरी 2014 में एक अंग्रेजी पत्रिका में स्वामी असीमानंद का साक्षात्कार छपा था जिसमें कथित तौर पर उसने भागवत को हमले के लिए मुख्य प्रेरक बताया था. यहीं से जाल बुना गया था.
उल्लेखनीय है कि उक्त चैनल को फाइल नोटिंग्स से यह जानकारी मिली कि जांच अधिकारी यूपीए के मंत्रियों के आदेश पर काम करते हुए अजमेर और दूसरे कुछ बम ब्लास्ट मामलों में तथाकथित भूमिका के लिए मोहन भागवत को पूछताछ के लिए हिरासत में लेना चाहते थे. जिसमें तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भी शामिल थे. लेकिन जांच एजेंसी के मुखिया शरद यादव ने इसलिए इंकार कर दिया, क्योंकि वह असीमानंद के साक्षात्कार की टेप की फारेंसिक जांच करना चाहते थे. बाद में जब मामला आगे नहीं बढ़ा तो एनआईए ने इस केस को बंद कर दिया.