विटामिन डी बहुत जरुरी है शारीर के लिए

 विटामिन डी की खुराक के साथ दूध की पर्याप्त मात्रा और शारीरिक गतिविधियां जैसे कसरत इत्यादि से बच्चों में विटामिन डी की मात्रा बढ़ती है। पूर्वी फिनलैंड विश्वविद्यालय में किए गए अध्ययन से यह नई जानकारी सामने आई है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक हड्डियों की मजबूती के लिए विटामिन डी का उच्च स्तर होना बहुत जरूरी है। साथ ही यह बहुत सारे पुराने रोगों का जोखिम भी कम करता है।

यह अध्ययन ब्रिटिश जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के दौरान जिन बच्चों के रक्त के नमूने गर्मियों के दिनों में ली गई, उनमें विटामिन डी का स्तर सबसे अधिक पाया गया। जबकि सर्दियों के दौरान इसका स्तर कम रहा, क्योंकि इस क्षेत्र में सर्दियों में धूप नहीं निकलती है।

इस शोध में 80 फीसदी बच्चों में विटामिन डी का स्तर कम मिला। विटामिन डी के स्तर को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों ने रोजाना ढाई-तीन गिलास दूध पीने की सिफारिश की है। साथ ही हफ्ते में दो से तीन बार मछली जरूर खाना चाहिए और वनस्पति तेल जरूर खाना चाहिए, क्योंकि इनमें विटामिन डी पाई जाती है। इसके अलावा बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में और खेलकूद में हिस्सा लेने के लिए बढ़ावा देना चाहिए।

हड्डियों, मसल्स और लिगामेंट्स की मजबूती के लिए

– शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए

– नर्व्स और मसल्स के कॉर्डिनेशन को कंट्रोल करने के लिए

 – सूजन और इन्फेक्शन से बचाने के लिए
– किडनी, लंग्स, लिवर और हार्ट की बीमारियों की आशंका कम करने के लिए
 – कैंसर की रोकने में मदद के लिए
कमी से होने वालीं दिक्कतें

– हड्डियों का कमजोर और खोखला होना

 – जोड़ों और मसल्स का कमजोर होना
– कमर और शरीर के निचले हिस्सों में दर्द होना खासकर पिंडलियों में
 – हड्डियों से कट की आवाज आना
 – इम्युनिटी कम होना
– बाल झड़ना
 – बहुत थकान और सुस्ती रहना
– बेचैन और तुनकमिजाज रहना
 – इनफर्टिलिटी का बढ़ना
 – पीरियड्स का अनियमित होना
 – ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का खोखला होना) और ऑस्टियोमलेशिया (हड्डियों का कमजोर होना) जैसी बीमारियां
 – बार-बार फ्रेक्चर होना

कितना विटामिन डी चाहिए

किसी भी सेहतमंद शख्स में विटामिन डी का लेवल 50 ng/mL या इससे ज्यादा होना चाहिए। हालांकि 20 से 50 ng/mL के बीच नॉर्मल रेंज है लेकिन डॉक्टर 50 को ही बेहतर मानते हैं। अगर लेवल 25 से कम है तो डॉक्टर की सलाह से विटामिन डी सप्लिमेंट जरूर लेना चाहिए।

टेस्ट और इलाज

अगर हड्डियों या मसल्स में दर्द रहता है तो 25-हाइड्रॉक्सी विटामिन डी ब्लड टेस्ट कराएं। इसे विटामिन डी डिफिसिएंशी टेस्ट भी कहते हैं। अगर शरीर में दर्द नहीं है तो भी यह टेस्ट करा सकते हैं। अगर लेवल काफी कम निकलता है तो छह महीने या साल भर बाद दोबारा करा सकते हैं।

कीमत: करीब 1200-1300 रुपये

इलाज: विटामिन डी की कमी पूरी करने के लिए बच्चों को एक बार में 6 लाख IU (इंटरनैशनल यूनिट) दी जाती हैं। यह कई बार इंजेक्शन के जरिए भी दिया जाता है। फिर नॉर्मल रेंज आने तक एक महीने हर हफ्ते 60,000 यूनिट और फिर हर महीने 60,000 यूनिट दी जाती है, जोकि ओरली दी जाती है। बड़ों में पहले तीन महीने हर हफ्ते 60,000 यूनिट और फिर हर महीने एक बार 60,000 यूनिट का सैशे दिया जाता है। अगर धूप में नहीं निकलते हैं तो 25-30 साल की उम्र के बाद हर महीने एक सैशे लेना चाहिए।

नोट: वैसे, ज्यादातर एक्सपर्ट मानते हैं कि यह टेस्ट कराए बिना और डॉक्टर की सलाह के बिना भी हर किसी को विटामिन डी की डोज लेनी चाहिए क्योंकि इसकी पूर्ति खाने से नहीं हो पाती और ज्यादातर लोगों में इसकी कमी होती है। महीने में एक बार सैशे लेने का नुकसान नहीं है। एक सैशे से महीने भर के विटामिन डी का कोटा पूरा हो जाता है। इसकी कीमत भी 25-30 रुपये तक ही होती है यानी महंगा भी नहीं है। जहां तक बच्चों की बात है तो 50 किलो से ज्यादा वजन के बच्चे को अडल्ट के मुताबिक ही डोज दी जा सकती है लेकिन छोटे बच्चों को डॉक्टर की सलाह से डोज दें। इंटरनैशनल गाइडलाइंस के मुताबिक बच्चे को जन्म से लेकर 12 महीने का होने तक रोजाना 4000 यूनिट दी जानी चाहिए। इसके लिए मां को विटामिन डी लेने की सलाह दी जाती है ताकि दूध के जरिए यह बच्चे तक में पहुंच सके। अगर मां बच्चे को दूध नहीं पिलाती है तो डॉक्टर बच्चे के लिए सिरप लिखते हैं। उम्र बढ़ने पर बच्चे में विटामिन डी की जरूरत बढ़ जाती है। वैसे एक्सपर्ट्स का मानना है कि बच्चों को रोजाना एक घंटे धूप में खेलने के प्रेरित करना चाहिए। इस दौरान बच्चे का शरीर कुछ खुला हो ताकि उसे पर्याप्त विटामिन डी मिल सके। अगर फिर भी बच्चा धूप में ज्यादा नहीं खेलता तो उसे विटामिन डी दे सकते हैं लेकिन पहले डॉक्टर से पूछ लें या फिर टेस्ट करा कर लेवल चेक कर लें।

कब लें खुराक

विटामिन डी की खुराक यूं तो खाली या भरे पेट कभी भी ले सकते हैं लेकिन फिर भी इसे खाने के बाद लेना बेहतर है।

ज्यादा हो तो खतरनाक

वैसे, विटामिन डी अगर बहुत ज्यादा हो तो बहुत खतरनाक हो सकता है। ज्यादा तब माना जाता है, जब शरीर में लेवल 800-900 नैनोग्राम/मिली तक पहुंच जाए। ऐसा होने पर किडनी फंक्शन से लेकर मेटाबॉलिजम तक पर असर पड़ता है। हालांकि विटामिन डी बहुत ही कम मामलों में इस लेवल तक जा पाता है। कई बार लोगों को लगता है कि विटामिन डी ज्यादा लेने से नुकसान हो सकता है। मुंह से लिए जानेवाले विटामिन डी का कोई नुकसान नहीं है। यह एक्स्ट्रा विटामिन डी शरीर से पॉटी या यूरीन के रास्ते निकल जाता है। लेकिन इंजेक्शन से लिया जानेवाला सारा विटामिन डी शरीर में ही रह जाता है इसीलिए विटामिन डी के सैशे, टैब्लेट या कैप्लूस ही लेने की सलाह दी जाती है।

…ताकि न हो कमी

1. कैसे मिलेगा कुदरती तरीके से विटामिन डी

विटामिन डी का सबसे बढ़िया सोर्स सूरज की रोशनी है। विटामिन डी पाने के लिए आप धूप में बैठें। खासियत यह है कि एक बार शरीर में जाने के बाद विटामिन डी लिवर में स्टोर हो जाता है और फिर धीरे-धीरे लिवर जरूरत के मुताबिक इसे ब्लड में रिलीज करता रहता है। ऐसे में रोजाना धूप में बैठना या निकलना भी जरूरी नहीं है। अगर आप हफ्ते में 1-2 दिन या महीने में कुल 4-5 दिन और साल भर में औसतन 45-50 दिन आप 45 मिनट के लिए धूप में निकलते हैं या बैठते हैं तो काफी हद तक विटामिन डी की खुराक पूरी हो जाती है। लेकिन ध्यान रखें कि इस दौरान शरीर का कम-से-कम 80-85 फीसदी हिस्सा खुला हो। वैसे, जब सूरज की किरणें बहुत तेज हों, तब विटामिन डी भी ज्यादा मिलता है लेकिन उस वक्त अल्ट्रा-वॉयलेट किरणों से शरीर को होनेवाले संभावित नुकसान को ध्यान में रखते हुए सुबह या शाम की धूप में बैठना ही बेहतर है। यूं भी दिन की धूप में बैठना प्रैक्टिकली मुमकिन नहीं है। ऐसे में गर्मियों में सुबह 8-10 बजे और शाम को 4-6 बजे और सर्दियों में सुबह 9-12 बजे और शाम को 3-5 बजे के बीच का समय चुनें। अगर शरीर को खुला वैसे बेहतर यह है कि आप खुद को किसी नियम में बांधने की बजाय सोच लें कि जब भी मुमकिन होगा, धूप में निकलेंगे या बैठेंगे तो शरीर को विटामिन डी मिलता रहेगा।

नोट: कई बार जन्म से ही विटामिन डी की कमी होती है। इस बीमारी को रिकेट्स कहते हैं और इन बच्चों के पैर टेढ़े हो जाते हैं। हालांकि यह बीमारी अब काफी कम होती है। इसके अलावा अगर किडनी विटामिन डी को ऐक्टिव फॉर्म में नहीं बदलती तो भी विटामिन डी की कमी हो सकती है। लेकिन ऐसे मामले भी चुनींदा ही होते हैं।

2. डाइट

– विटामिन डी फैट में घुलनेवाला विटामिन है। यह शरीर में अच्छी तरह जज्ब हो, इसके लिए हमें हेल्दी फैट जैसे कि ड्राई-फ्रूट्स, कम फैट वाले डेयरी प्रॉडक्ट्स, चीज़ आदि जरूर लेने चाहिए।

– मछली, मशरूम, अंडे और मीट में विटामिन डी पाया जाता है, लेकिन यह इतना नहीं होता कि आपके शरीर की जरूरत पूरी कर सके।

– दूध और दूध से बनी चीजें जैसे कि पनीर, दही, योगर्ट आदि में कैल्शियम काफी होता है। रोजाना कम-से-कम एक गिलास दूध (लगभग 230 ml कैल्शियम), एक कटोरी दही (करीब 250 mg) और हफ्ते में 250 ग्राम पनीर (करीब 200 mg कैल्शियम) जरूर खाना चाहिए।

– हरी सब्जियों जैसे कि मशरूम, पालक, बीन्स, ब्रोकली, चुकंदर, कमल ककड़ी आदि और केला, संतरा, शहतूत, सिंघाड़ा आदि फलों में भी कैल्शियम पाया जाता है।

– ड्राई-फ्रूट्स (बादाम, किशमिश, खजूर, अंजीर, अखरोट आदि), तिल और अंडे भी खाना चाहिए क्योंकि इनमें काफी कैल्शियम होता है। राजमा, मूंगफली, तिल, टूना मछली खाना भी फायदेमंद हैं।

3. एक्सरसाइज है जरूरी

रोजाना कम-से-कम 30 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें। एक्सरसाइज शरीर को फिट रखने और उसके सही तरीके से काम करने के लिए बेहद जरूरी है। यहां तक एक्सरसाइज ब्लड में मौजूद विटामिन डी और कैल्शियम को जज्ब करने में भी मदद करती है। डॉ. सी. एस. यादव कहते हैं कि अगर आप रोजाना 1 घंटा एक्सरसाइज करते हैं तो बाकी 23 घंटे फिट और खुशहाल रह सकते हैं। अगर यह एक घंटा अपने लिए नहीं निकाल सकते तो फिर 24 घंटे हेल्थ को लेकर परेशान रहेंगे। एक्सरसाइज में कार्डियोवसकुलर, स्ट्रेंथनिंग और स्ट्रेचिंग को मिलाकर करें। कार्ड्रियो के लिए साइकलिंग, अरोबिक्स, स्वीमिंग या डांस, स्ट्रेंथनिंग के लिए वेट लिफ्टिंग और स्ट्रेचिंग के लिए योग करें। अगर वॉक करना चाहते हैं तो कम-से-कम 45 मिनट ब्रिस्क वॉक यानी तेज-तेज चलें।

सनस्क्रीन को लेकर कन्फ्यूजन

आजकल लोग घर से बाहर निकलते हुए सनस्क्रीन लगाते हैं। सनस्क्रीन सूरज की किरणों को ब्लॉक करता है। इससे शरीर को धूप नहीं मिल पाती। कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि सनस्क्रीन न लगाएं जबकि कुछ कहते हैं कि सनस्क्रीन न लगाने से स्किन को नुकसान की आशंका भी बनी रहती है। ऐसे में बेहतर है कि सनस्क्रीन लगाना जारी रखें लेकिन विटामिन डी पाने के लिए अलग से धूप में बैठने का समय तय कर लें।

आयर्वेद में इलाज

– आयुर्वेद में दवा, मालिश और लेप को मिलाकर विटामिन डी की कमी से होनेवाले दर्द का इलाज किया जाता है। आमतौर पर इलाज का नतीजा सामने आने में 3 महीने लग जाते हैं।

– पूरे शरीर पर तेल की धारा डालते हैं। इसके लिए क्षीरबला तेल, धनवंतरम तेल आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसे 40 मिनट रोजाना और 5 दिन लगातार करते हैं। इससे हड्डियां मजबूत होती हैं।

– महिलाएं शतावरी सुबह और शाम एक-एक टैब्लेट लें। वैसे तो किसी भी उम्र में ले सकते हैं लेकिन मिनोपॉज के बाद जरूर लें।

– रोजाना एक चम्मच मेथी दाना भिगोकर खाएं। मेथी दर्दनिवारक है और हड्डियों के लिए अच्छी है।

– गुनगुने दूध में एक चम्मच हल्दी डालकर पिएं।

– रोजाना एक चम्मच बादाम का तेल (बादाम रोगन) दूध में डालकर पिएं।

– विटामिन डी के सप्लिमेंट ले सकते हैं।

कैल्शियम के साथ क्या कनेक्शन

कैल्शियम हड्डियों का एक मुख्य तत्व है। इसकी कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा, यह न्यूरो सिस्टम को दुरुस्त रखता है। शरीर के कई अंगों के काम करने में मदद करता है। खास बात यह है कि कैल्शियम तभी शरीर में जज्ब हो पाता है, जबकि विटामिन डी का लेवल ठीक हो यानी अगर विटामिन डी कम है तो कैल्शियम शरीर में नहीं जा पाता और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। ऐसे में कैल्शियम अगर पूरा ले भी रहे हैं तो भी उसका फायदा नहीं मिलता। शरीर को कैल्शियम अगर पूरा नहीं मिलता तो वह हड्डियों में मौजूद कैल्शियम को इस्तेमाल करना शुरू करता है क्योंकि कैल्शियम ब्लड के जरिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर काम करता है। अगर हड्डियों से कैल्शियम निकलना शुरू हो जाता है तो फिर उनमें दर्द होने लगता है। इस तरह यह कमी और दर्द का पूरा एक पूरा चक्र बन जाता है, जिससे निकलने के लिए विटामिन डी लेवल सही रखना जरूरी है।

कितना होना चाहिए कैल्शियम

शरीर में कैल्शियम का लेवल 8.8 से 10.6 mg/dl होना चाहिए। इसके लिए रोजाना 1000 mg यानी 1 ग्राम कैल्शियम लेने की जरूरत होती है। कैल्शियम से भरपूर डाइट (दूध और दूध से बनी चीजें, हरी पत्तेदार सब्जियां और ड्राई-फ्रूट्स) लेने से यह जरूरत काफी हद तक पूरी हो जाती है। प्रेग्नेंट महिलाओं, दूध पिलाने वाली मांओं और बढ़ते बच्चों को भी ज्यादा मात्रा में कैल्शियम की जरूरत होती है। प्रेग्नेंट और दूध पिलाने वाली मांओं को दोगुनी यानी करीब 2 ग्राम कैल्शियम रोजाना की जरूरत होती है। इसी तरह 1-4 साल के बच्चों को रोजाना 700 mg, 4-8 साल के बच्चों को 1000 mg और 9-18 साल के बच्चों को 1300 mg कैल्शियम चाहिए होता है। उम्र बढ़ने के साथ खासकर महिलाओं में कैल्शियम सप्लिमेंट या टैब्लेट लेने की जरूरत पड़ने लगती है।

कैल्शियम के लिए कौन-सा टेस्ट

कैल्शियम की जांच के लिए 2 टेस्ट होते हैं:

ब्लड कैल्शियम: यह ब्लड में मौजूद कैल्शियम की जानकारी देता है। हालांकि यह बहुत फायदेमंद नहीं है क्योंकि हमें हड्डियों में मौजूद कैल्शियम की जानकारी चाहिए होती है, न कि ब्लड में मौजूद कैल्शियम की।

कीमत: 300-400 रुपये

डेक्सास्कैन: इसे बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट भी कहते हैं। इससे हड्डियों में मौजूद कैल्शियम के लेवल की जानकारी मिलती है। हड्डियों के दर्द या किसी और दिक्कत को जानने के लिए यही टेस्ट कराना बेहतर है।

कीमत: 1200 से 1500 रुपये

नोट: अक्सर गली-मोहल्ले में फ्री में बोन डेंसिटी टेस्ट के कैंप लगते हैं। इनमें एड़ी के जरिए हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा की जांच की जाती है। लेकिन यह तरीका सही नहीं है। इस टेस्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

कौन-सी दवा लें

हमें रोजाना 1 ग्राम (1000 mg) कैल्शियम की जरूरत पड़ती है। 50 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं और 70 साल के ज्यादा उम्र के पुरुषों को रोजानना 1200 mg कैल्शियम लेना चाहिए। खाने से यह जरूरत पूरी नहीं हो रही हो तो डॉक्टर की सलाह से हर दिन 500 mg की 1 टैब्लेट ले सकते हैं। 30 साल की उम्र के बाद महिलाओं को और 40 साल के बाद पुरुषों को कैल्शियम टैब्लेट लेनी चाहिए। कैल्शियम लेने पर कई बार गैस, अपच, कब्ज आदि की शिकायत हो सकती है। ऐसे में खाने के बाद लेना और खूब सारा पानी पीना चाहिए।

चंद अहम सवाल

क्या सबको कैल्शियम टैब्लेट लेनी चाहिए?

अगर आप डाइट के जरिए कैल्शियम बहुत अच्छी मात्रा में ले रहे हैं तो अलग से कैल्शियम टैब्लेट लेना जरूरी नहीं है। हां, उम्र बढ़ने के साथ कैल्शियम टैब्लेट लेने की सलाह दी जाती है।

कैल्शियम ज्यादा हो तो क्या शरीर में पथरी बन जाती हैं?

पथरी बनने के पीछे दूसरी वजह होती हैं। कैल्शियम का इसमें सीधे तौर पर कोई रोल नहीं होता।

किडनी और दिल के मरीजों को कैल्शियम ज्यादा नहीं लेना चाहिए?

वैसे तो कैल्शियम का सीधे तौर पर इन दोनों बीमारियों से कनेक्शन नहीं है लेकिन फिर भी बेहतर है कि कैल्शियम टैब्लेट लेना शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लें।

कौन-सा कैल्शियम लेना बेहतर है?

कई तरह के कैल्शियम मार्केट में मिलते हैं। कैल्शियम कार्बोनेट सबसे कॉमन है और इसे खाने के साथ लेना बेहतर है, जबकि कैल्शियम साइट्रेट के साथ ऐसा कोई नियम नहीं है। कोई भी कैल्शियम टैब्लेट खरीदते वक्त उसमें कैल्शियम की मात्रा जरूर चेक कर लें।

कहते हैं कि गेंहू के दाने के बराबर चूना रोजाना पानी में डालकर रोज खाली पेट लेने से कैल्शियम की जरूरत पूरी हो जाती है। यह सही है क्या?

यह पूरी तरह गलत है। मॉर्डन मेडिसिन के सभी जानकार इसे पूरी तरह गलत बताते हैं और चूने से दूर रहने की सलाह देते हैं।

साभार -इंडिया टाइम्स .com

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