चुनाव आयोग पर सवाल क्यूं

चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसने भारतीय लोकतंत्र को न सिर्फ मजबूती प्रदान की है बल्कि उसकी गरिमा को भी समस्स्त विश्व में बढाया है |उसकी कार्यशैली पर सवाल खड़े करना उतना ही आपत्तिजनक है जितना सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले को पक्षपातपूर्ण बताकर उसकी निंदा करना |चुनाव हारना या जीतना एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है जिससे हर राजनीतिक पार्टी को दो – चार होना ही है |कभी जीतना है तो कभी हारना है |आज अरविन्द केजरीवाल ,मायावती ,लालू प्रसाद ,अखिलेश यादव ,ममता बनर्जी और कांग्रेसी नेताओं ने चुनाव आयोग की ईमानदारी और उसकी चुनाव प्रक्रिया पर न सिर्फ सवाल उठाया है बल्कि रोजाना इसे लेकर हंगामा भी खड़ा कर रखा है |इनमे से अधिकांश ई वी एम् को लेकर बवाल कर रहे हैं जिसके जरिये १९८८ से हमारे देश की चुनावी प्रक्रिया संचालित हो रही है |हमारे देश के चुनाव आयोग की तारीफ़ पूरी दुनिया में होती है |कांग्रेस सहित ,सपा ,बसपा ,राजद ,तृणमूल कांग्रेस और अभी -अभी पैदा हुई केजरीवाल की आप पार्टी ,इन सभी ने उसी ई वी एम् पद्धति से चुनाव जीत कर अपनी सरकारें बनाई हैं जिसका आज ये सब विरोध कर रहे हैं |इसका मुख्य कारण है केंद्र सहित दर्ज़न से ऊपर राज्यों में भाजपा का चुनाव जीतना | भाजपा की जीत के बाद से ही इन सबों ने विधवा विलाप शुरू कर दिया है |यानी जब ये सब जीत रहे थे तो ई वेई एम् पद्धति ठीक थी और जब भाजपा ने इन्हें पटखनी दी तो यह प्रक्रिया दोष पूर्ण हो गई |सबसे ज्यादा आलोचना और नौटंकी ई वी एम् को लेकर मायावती और केजरीवाल ने की है |केजरीवाल तो खिलौने वाली ई वी एम् से अपनी बात को सही साबित करने की हिमाकत तक कर चुके हैं |बाकी की विपक्षी पार्टियाँ भी महज भाजपा विरोध के नाम पर इनके सुर में सुर मिला रही हैं |अगर ई वी एम् में वाकई दोष होता तो ममता दीदी लगातार दो बार प्रचंड बहुमत से न जीत पाती |मनमोहन सिंह दस साल देश के प्रधानमंत्री नहीं रह पाते ,क्यूंकि कांग्रेस सहित संप्रग सरकार में शामिल सभी पार्टियाँ ई वी एम् पद्धति से ही चुनाव जीत कर दिल्ली पंहुची थी |चुनाव आयोग ने इन सब बकवासों और अनर्गल आरोपों के बावजूद सभी राजनीतिक दलों की बात सुनी और उन्हें इस बात की खुली चुनौती दी कि , वे अपने एक्सपर्ट्स के साथ आकर ई वी एम् से छेड़ छाड़ कर के दिखाएँ |गली – मोहल्लों में अपना गला फाड़ कर ई वी एम् को कोसने वाला एक भी दल ऐसा नहीं कर सका |आप पार्टी के सीनीयर लीडर और दिल्ली के उप -मुख्या मंत्री मनीष शिशोदिया ने तो हताशा की पराकाष्ठा दिखाते हुए यहाँ तक कह दिया कि ,”चुनाव आयोग को आई आई टी और मेडिकल सहित सॉफ्टवेयर क्षेत्र के लोगों को भी इस मीटिंग में बुलाना चाहिए था “|आप पार्टी का कोई भी’ महान इंजीनीयर ‘चुनाव आयोग की चुनौती पर खरा नहीं उतर सका |प्राइवेट कोड वर्ड डालकर मदर बोर्ड बदलने का आप पार्टी का दावा पूरी तरह झूठा साबित हुआ |अब विपक्ष के ज्यादातर नेताओं ने अपनी औकात और चुनाव आयोग की निष्पक्षता को समझने के बाद नया राग अलापना शुरू कर दिया है कि ,चुनावी प्रक्रिया में बदलाव कर इसे बैलट पेपर पद्धति से कराया जाए |यह मांग उन्ही नेताओं की और से ज्यादा उठ रही है जो वर्षों बूथ कैप्चरिंग कर के चुनाव जीत जाते रहे |यानी देश को एक बार फ्फिर बैलगाड़ी युग की ओर घसीटने की कोशिश |इसे चुनाव आयोग तो क्या देश का कोई एक नागरिक तक नहीं मानेगा |वैसे भी चुनावी प्रक्रिया में बदलाव करना और उसे कानून बनाना संसद का काम है जो फिलहाल तो नामुमकिन है |वाइज भी अपना जनाधार खो चुकी पार्टीयों को अपनी जमीन मजबूत करने और जनता का विश्वास जीतने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए न कि ऐसी फालतू बातों पर |

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